Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 642
________________ शब्दार्थ-कोषः ] सोमया - सौम्यता सोयगिज्ॐ=श्रोत्र प्राह्य शब्द को सोयग्गणा - शोकाभि से तथा सोयरिया अपने सगे भाइयों को सोयन्ति = सोच करते सोरिय= सौर्य सोलगाणि= भुना हुआ मांस ( कबाब ) सोहई- शोभा पाते हैं। सोहन्ति शोभा पाते हैं सोहणे - शोभन अतः सोडवि= वह भी सोवीर= कांजी के वर्तन धोवन सोवीरण्यवसभो= सिन्धु सौवीर देश का, राजवृषभ, राजाओं में श्रेष्ठ सोहिओ - शोभित सोहि सुशोभित उसमें सोहेज-विशुद्धि करदे इखेद अर्थ में हुए मारे हुए हिन्दी भाषाटीकासहितम् । ५६१ ६१८ १०६६ ६५२, ६५४ अलंकृत होते हुए हाई-हता है इत्थी = हस्ती हम्मंति=मारे जाते हैं। तुमलं किया = हृष्ट, तुष्ट और ८६६ | हवइ - है, होवे, होता है, ६६० [ ६७ ६६६, ६६७, ६६६ ६७०, ६७२, ६७५, ६७८, ६८०, ६८१ ८३३ |द्दवंति=हैं ७५३ ६५६ हविज्जा = होवें हवेज्जा = होवे, होता है ६७३, ६७६, इयगओ=घोड़े पर चढ़ा हुआ ७२४ हयाणीए घोड़ों की अनीका समूह से ७२३ हरा = रात दिन रूप चोर ५६८ हरंति = परलोक में ले जाते हैं ५६८ हरियाणि हरी का हरिणो-हरिषेण ७०७ ७५७ दहियं हसित हास्य हसियस - हसित शब्द - हँसने का ७६३ ६६० |हास=हास्य १०१३ | दासा-हास्य से ७७५ हासे = हास्य में ६६१ | हास सोगाओ-हास्य और शोक से ७७० तथा १०८२ | हासं हास्य ६८३, ६८५, ११३१ ६५२, ६८३ ६६७, ६६६, ६७१ ६७८, ६८०, ६८१ ६८३, ६८५ हुई ११२७ हि निश्चय से ७२६ | हिच्च छोड़ करके हिचा=छोड़कर ७३४ | हियं = हितकारी और ६०६ | हिरणं - सुवर्णादि पदार्थ ८७६ हिंसाए - हिंसा में ६६७ शब्द ६७५,६७६ हंसा-हंस-पक्षी जाते हैं उसी प्रकार ६२२ हंसो हंस ६१८ ६६५ ११२१ १०७६ हि अयसंभूया हृदय के भीतर उत्पन्न गया हुआसणे = अभि में हु= निश्चय में දැමු ६६० हीरसि दुष्ट मार्ग में ले जाया ८५६ ६६० १०३८ १०५१ ६१६ ७५१ ७६४,८८४ SEX ७२६ १०४५ ८१५, ८२२ ६११, ६१४, ६१८, ६२१ ६२६, ७१०, ७८४, ८७७ ८६१, ६८, ६०२, ६०३ १०४४, ११०४

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