Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 638
________________ शब्दार्थ-कोषः] हिन्दीभाषाटीकासहितम्। [६३ . ७१४ ... १११२ सव्वकामियं-सर्व कामनाओं को पूर्ण संसत्ताई-संसक्त . ६६७, ६६६ ... करने वाला ११०५ संसओ-संशय है १०२५, १०६७ सव्वगत्तेसु-सर्व शरीर में संसए-संशय के ११३४, १०६७ सव्वदुक्ख-सर्व दुःखों से ८५१ संसारवडणे-संसार के बढ़ाने वाले ६३३ सव्व-सर्वज्ञ ६६८ | संसारमोक्खस्स-संसार के मोक्ष के ५६५ सविडिद-सर्व ऋद्धि ६६६ ससुपं-पुत्र के और सव्वाणि सर्व ६६८, ६६७ | संसारसागरे संसार रूप समुद्र में ११३७ सव्वदंसी-सर्वदर्शी ६४२, ६५८ | संसारे संसार में ११३८ सव्वसो-सर्व १०६५, ६६३, १०३५, १०३६ | संसारा-संसार में १०६७ सव्ववेया सर्व वेद हैं ११२७ संसारसागरं संसार रूप समुद्र को सव्वसनू-सर्व शत्रुओं को १०३२ संसयातीत-हे.संशयातीत! १०६७ सव्वोसहीहि-सौषधियों से १५8 | संसारचकस्स-संसार चक्र के . . ५८४ सव्वसुत्तमहोहही हे सर्वसूत्र महो- | संसारभया संसार के भय से .५८२ दधि ! १०६७ | ससरक्खपाए-रज से भरे हुए पाँव .. सम्वेसिं-सर्व .. होने पर भी सम्वेहि सर्व ६३६ | संसय-संशय को सव्वा सर्व और १०७० संसारम्मि-संसार में १ सम्वे-सर्व ६३६, ६३८, ७४४, ६६४, १०४६ | संसारहेउं संसार का हेतु १०५१ सह-साथ ५६०, ५६६, ६३८, ६६०, ७७२ सवलोगम्मि-सर्वलोक में १००१, १०५६ सहस्साई-सहस्र अर्थात् हज़ारों गुण ७६२ १०६०, १०६१ सहस्साणं-सहस्रों के ... १०३१ सवण्णू-सर्वज्ञ १०६१ सहिए-ज्ञानादि से युक्त वा स्वहित के सव्वत्थ-सब पदार्थों में करने वाला . ६५८, ६४०, ६४६ 'सव्वथा सर्व क्षेत्रादि के विषय व्यापार ७४७ | सहिज्जा-सहन करे . ....... ६४४ सव्वंपि-सर्व पदार्थ भी ६२५ सहे-सहन करता है सव्वभक्खी-सर्वभक्षी ६०६ सा-वह ६०६, ६१०, ७४५,८८६, ६५७ सन्वारम्भ सर्व प्रकार के प्रारम्भ का ७६७ ६७५, ६७७, ६७६, ६८०, ९८२,६८६ सव्वभूयाण-सर्व जीवों के १२० १००६, १०५६ सव्वभूएसु-सर्वभूतों में | साइम-स्वादिम : 'सव्वलोयपभंकरो-सर्वलोक में प्रकाश सागरन्तं-समुद्रपर्यन्त ७५१, ७.५ करने वाला . १०६० सागरो-सागर . संवरबहुले-संवर बहुल ६६३, ६६४, ६६५ साणुक्कोसे-करुणामय हृदय ६६६ ससत्तं-अपनी गर्भवती स्त्री को. १२७ सामरणं श्रमण भाव को, जो ७७७,६६४ संसारो-संसार को ७४, १०५८ . OC X w .. : ७६२

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