Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 636
________________ शब्दार्थ-कोषः ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [६१ www संबुद्धा-तत्त्ववेत्ता ८६०, ६६५ | समाहियं समाहित, बंधे हुए को! अतः संबुद्धो संबुद्ध हुआ १०४६ संबुद्धय्या-संबुद्ध आत्मा __EE | समाहिए-समाहित-चित्त-समाधि सब्भूय सद्भूत . १०२६ वाला ६६८ सम्वभूएसु-सर्व जीवों में ८५४ समाहिओ-समाहित चित्त सन्भिन्तर-आभ्यन्तर और | समाहिठाणा-समाधि-स्थान ६६५, ६६३ समइक्कमंता-सम्यक् प्रकार से जाते हैं ६२२ समाहिबहुले समाधि बहुल ६६३, ६६४ समचउरंसो-समचतुरस्र संस्थान और ६५६ | समाहिठाणे-समाधि स्थान समत्था समर्थ हैं ११०५, ११०६, १११२ समिई समिति १०७१ ११३३, ११३६ समिए समिति वाला होवे १०८४ समण श्रमण ७७४ समिईओ समितियाँ १०७१, १०७३, १०८६ समणत्तणं-संयम का पालन ८०६,८०७॥ १०६५ समणा साधु ६०० | समिक्खए-सम्यक् प्रकार से देखती समणे-श्रमण . ६६८, १००४ १०२० समणोश्रमण - ११२६, ११३० समिद्धे ऋद्धि से पूर्ण... ५८० समया-समता .. ७६३ समिश्च जान करके ६५८, ६४० समयाए-समभाव से . ११३० समिला लोहे की कीली वाले जुए में ८२१ सम-साथ समुक्करिसो सम्यक् उत्कर्ष १०६६ समंसाई-स्वमांस-मेरे शरीर का मांस ८३३ | समुच्छिया व्याप्त हो गई ६७५ समाउले व्याप्त-आकीर्ण १०००, १०१० | संमुच्छई उत्पन्न हो जाता है ६०१ १००३ | समुद्धत्तुं-उद्धार करने को ११०५, १११२ समाउत्ता-समायुक्त ... ११३३ समागमे परस्पर मिलने में १००६, १०६६ ११३३, ११०६ समागम्म-जानकर समागया इकट्ठे होगये १०१४ | समुद्दपालि-समुद्रपाल १२८ समागमो-समागम १०१६ समुद्दपाले-समुद्रपाल मुनि समायरामो प्रहण करेंगे ६०६ समुद्दपालो-समुद्रपाल ६३२ समारम्मे-समारम्भ १०६१, १०६३, १०६४ | समुद्देव-समुद्र की तरह समारूढो-आरूढ़ हुआ, ६७० | समुदाय सम्यक् निश्चय कर ११३४ समावन्नो प्राप्त हुआ ७३५ | समुहविजयंगओ समुद्रविजय के समासेण-संक्षेप से १०७३, १०८६ अंग से उत्पन्न होने वाला ८२ समाहि-समाधि के ६६४ | समुट्टिओ-संयम में सावधान हुआ ८४७ समाहि-समाधि को. ६१४:। समुप्पजेजा उत्पन्न होवे .. ६६७,६७१ १०२७ | समुइंमि-समुद्र में २८

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