Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 635
________________ ६०] उत्तराध्ययनसूत्रम् [शब्दार्थ-कोषः । ७६३ ६६१ ६७१ ७१४ संतत्त-भावं-सन्तप्त भाव ५९१ | सन्नाइपिण्ड-अपनी जाति, अपने सत्तु-शत्रु और । ज्ञातिजनों के आहार को ७१८ सत्तू-शत्रु. १०३२, १०३३ | सन्निरुद्ध-रोके हुओं को ६६३ संतो-होकर ७७६ | सन्निमे समान ७८२ संताणछिन्ना-स्नेह की संतति का सन्निनाण-संज्ञि ज्ञान के ७७६ .. विच्छेद है, जिसके ६२७ सन्निनाएणं-विशेष नाद से सत्थं-शस्त्र सन्निसेज्जागयस्स-एक शय्या पर बैठे। ,६०६ संथारए-संस्तारक पर सन्निसेज्जागए-एक पीठादि पर बैठा संथारं कम्बलादि हुआ संथारे-संस्तारक पर १०००, १००४ संनिसेजागए पीठ आदि एक आसन संथुया परिचित ६५२, १०७० - पर बैठा हुआ ६७० सथवो संस्तव संपराए-संसार से ६०२ संथवं-संस्तव को ६४१, ६५२, ६८८ संपगरेइ प्रहण करता है ६४० सदारं-अपनी स्त्री के साथ संपजलिया संप्रज्वलित १०४१ सदेसं-स्वदेश को संपगाढे-आसक्त है १०७ सद्दा-शब्द ६५७ संपडिवाइओ=स्थिर कर दिया ६२ सहे शब्दों को संपिण्डिया भली प्रकार से मिले हुए ६१६ सद्देन शब्द से संपडिवजई प्रहण करते हैं १०११ सहरूवरसगन्धफासाणुवादी-शब्द, संपणामए समर्पण करने लगे, समर्पित रूप, रस, गन्ध और स्पर्श के किया १०१२ भोगने वाला ६५ संपत्ता प्राप्त करके १०६६ संधाव-निरन्तर जाता है १०८ | संपत्तोप्राप्त हुआ ' ८२५, ६७१ सद्धा-श्रद्धा, अभिलाषा ६१३ संपत्ते प्राप्त हुओं को सद्धि-साथ ६७०,६७१ | संपन्नान्युक्त सम्तं-विद्यमान । ११०४ | सपरिसो-परिषद् के सहित . १११० सन्ता-की हुई १०४४ | संपयग्गम्मि प्रधान सम्पदा में ८७७ सन्त-थके हुए ७२४ सपरिसासर्व परिषद् के साथ६६६ सन्तिकरो-शान्ति के देने वाला ७५४ सपाहेओ-पाथेयसहित ७८६ सन्ती शान्तिनाथ सपरियणो परिजनों के साथ और १२२ सन्तो-होने पर ८७५ सफला-सफल सत्यं शत्रों, शानों में सबन्धवासबान्धव है संनिही-रात्रि को. ७६८ सबन्धवो-बन्धुओं के साथ १२२ संनिरुद्धा-रोके हुए १६४ | सबलेहि-शबल हैं - ६५७ ६१६

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