Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 633
________________ ५८] उत्तराध्ययनसूत्रम् [शब्दार्थ-कोषः .. www विहार-विहार को ५८७ वेगेण-वेगस विहरसी-विचरता है १०३५ वेजचिन्तं वैद्य की चिन्ता ६४६ विहरिस्सामि-विचरूँगी ६३२ वेयणा-वेदना ७६६, ८११, ८१३, ८१४ विहरिंसु-विचरने लगे। १००४ ८३६, ८३८,८८२, ८६१, ८६३ विहारा-विहार स्थानों को ६०० २०६३ विहारो-विहार ६१८ वेयमुहं वेदों के मुख को ११०६ विहारिणो अप्रतिबद्ध विहार करने । | वेयरणि वैतरणी . वाले ६३० | वेयरणी-वैतरणी है ८६६ विहारजत्तं-विहारयात्रा के लिए ८६६ | वेयविऊ-वेदों के जानने वाले ११०५, ११३६ विहाराभिनिविचित्ता-मोक्षस्थान में वेयविओ वेदवित् .. ५८८ स्थापन किया है चित्त जिन्होंने वेयविय-सिद्धान्त का वेत्ता ६४२ ' ५८४ वेयवी वेदवित्-वेदों का ज्ञाता विहि-विधि का १०८३ | वेयसा यज्ञ से जो कर्म क्षय करता है विहणो-रहित, विहीन ६१५,६१० वही यज्ञ का १११३ वीदंसरहि-श्येनों के द्वारा ८३० | वेयाल-वेताल ६०६ वीरजायं-वीरयात-चीरसेवित ६०० वेया वेद ५६३, १११३ वुइयम्=कहा हुआ ७४३ वेयाणं वेदों को १११२ बुग्गहे-युद्ध में ७१२ वेसमणो वैश्रवण के समान ६६ वुच्चई-वुच्चई-कहा जाता है ७०५, ७०६ वेरुलिय वैदूर्य मणि की तरह ६०३ ७०७, ७०८, ७०६, ७१०, ७११,७१२ वेवमाणी कांपती हुई . ६२ ७१३, ७१४, ७१५, ७१७, ७१८ | वोच्छामि कहूँगा १०८४ १०५८ | वोसिरे व्युत्सर्जन करे १०८८ वुञ्चसि-कहा जाता है घुज्झमाणाय-डूबते हुए १०५२, १०५४ खुत्ता-कही है ! कहे हैं ६०७, ६०८ | शरणं शरणभूत है वुत्ता-कहे गये हैं ! १०३६, १०४०, १०४४ १०५७, १०७६, १०६५ घुत्ते-कहे गये हैं ! १०३२, १०४३, १०४७ स-अपने, वह-श्रेणिक राजा ६०१,६४१ १०५०, १०५४, १०६४, १०७५ ६४२, ६४३, ६४५, ६४६, ६४७, ६४८ वुत्तो कहा हुआ ८७५, १०५८, १११७ ६४६, ६५१, ६५२, ६५३, ६५४, ६५६ बुवंतं-कहने पर उसके प्रति १०३२ ६५७, ६५८,८६०,७७२,६२१, ४२२ बेहया अनुभव की, भोगी, विदित है ८१३ ६२५, ६४८, १०३८ ८१४, ८३६, ८३६, १०४६ सउणो शकुन पक्षी ८३० बेए-वेदों को ५८६ | सओवमा सौ की उपमा वाली . ४५ ७३८ १०५४ स

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