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उत्तराध्ययनसूत्रम्
[शब्दार्थ-कोषः ।
७६३
६६१
६७१
७१४
संतत्त-भावं-सन्तप्त भाव ५९१ | सन्नाइपिण्ड-अपनी जाति, अपने सत्तु-शत्रु और
। ज्ञातिजनों के आहार को ७१८ सत्तू-शत्रु. १०३२, १०३३ | सन्निरुद्ध-रोके हुओं को
६६३ संतो-होकर ७७६ | सन्निमे समान
७८२ संताणछिन्ना-स्नेह की संतति का
सन्निनाण-संज्ञि ज्ञान के
७७६ .. विच्छेद है, जिसके ६२७
सन्निनाएणं-विशेष नाद से सत्थं-शस्त्र
सन्निसेज्जागयस्स-एक शय्या पर बैठे।
,६०६ संथारए-संस्तारक पर
सन्निसेज्जागए-एक पीठादि पर बैठा संथारं कम्बलादि
हुआ संथारे-संस्तारक पर १०००, १००४
संनिसेजागए पीठ आदि एक आसन संथुया परिचित ६५२, १०७०
- पर बैठा हुआ
६७० सथवो संस्तव
संपराए-संसार से
६०२ संथवं-संस्तव को ६४१, ६५२, ६८८
संपगरेइ प्रहण करता है ६४० सदारं-अपनी स्त्री के साथ
संपजलिया संप्रज्वलित १०४१ सदेसं-स्वदेश को
संपगाढे-आसक्त है
१०७ सद्दा-शब्द
६५७
संपडिवाइओ=स्थिर कर दिया ६२ सहे शब्दों को
संपिण्डिया भली प्रकार से मिले हुए ६१६ सद्देन शब्द से
संपडिवजई प्रहण करते हैं १०११ सहरूवरसगन्धफासाणुवादी-शब्द, संपणामए समर्पण करने लगे, समर्पित रूप, रस, गन्ध और स्पर्श के
किया
१०१२ भोगने वाला ६५ संपत्ता प्राप्त करके
१०६६ संधाव-निरन्तर जाता है १०८ | संपत्तोप्राप्त हुआ ' ८२५, ६७१ सद्धा-श्रद्धा, अभिलाषा ६१३ संपत्ते प्राप्त हुओं को सद्धि-साथ
६७०,६७१ | संपन्नान्युक्त सम्तं-विद्यमान ।
११०४ | सपरिसो-परिषद् के सहित . १११० सन्ता-की हुई
१०४४ | संपयग्गम्मि प्रधान सम्पदा में ८७७ सन्त-थके हुए
७२४ सपरिसासर्व परिषद् के साथ६६६ सन्तिकरो-शान्ति के देने वाला ७५४ सपाहेओ-पाथेयसहित
७८६ सन्ती शान्तिनाथ
सपरियणो परिजनों के साथ और १२२ सन्तो-होने पर
८७५ सफला-सफल सत्यं शत्रों, शानों में
सबन्धवासबान्धव है संनिही-रात्रि को.
७६८ सबन्धवो-बन्धुओं के साथ १२२ संनिरुद्धा-रोके हुए
१६४ | सबलेहि-शबल हैं
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