Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 628
________________ शब्दार्थ-कोषः ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [५३ लयणस्स-लयन, गुफा के १८० | लोगपूइओ-लोकपूजित 8E लयणाई वसती ६४७ | लोगपदीवस्स-लोक प्रदीप का ६६८, १००२ लया-लताओं से ८६६, १०३८, १०४० | लोगे-लोक में १०२८ ललिएण-लालित्य में १८६ लोगो लोक वा परलोक ५८८, ५६६, ६०८ ल्लविय-बोलना ६८९ लोभ-लोभ को ६६३ लहई प्राप्त करता है ६१४ लोमे-लोभ में . . . १०७६ लहु-हलका, निस्सार लोहमारु-लोहमार की ... ८०२ लहुं शीघ्र ६८ लोहतुंडेहि-लोहे के तुल्य कठिन मुखलहुन्भूओ और लघुभूत होकर १०३५ वाले ८२३ लहुभूय-लघुभूत ६३० लोहमया-लोहमय ८०५ लहिउं प्राप्त करके . ७०३ लोहरहे-लोहे के रथ में ८२१ लहियाणवी प्राप्त होकर भी ८६८ | लोहा-लोभ से .. ११२१ लाढेसदनुष्ठान से युक्त ६४२, ६४३ | लोहाई-लोह को .....८३२ लाभ-लाभ . लामा रूपादि का लाभ भी आपको ११६ लाभालामे लाभ और अलाभ मैं ८५५ | व-अथवा, वत्, की तरह, पादपूर्ति में है .. लालप्पमाणं-बार २ विलाप करता हुआ, परस्पर अर्थ में है ६११, ६१८, ६२२ ___संलाप करते हुए को ५६१, ५६८ ६५२, ७३८, ७६६, १००६, १०८५ लिंग-लिंग का १०२८ १११७ लिंगे-लिंग के १०२६ वहरवालुए-वन वालुका में, अथवा ८१६ लुत्तकेसं लुप्तकेश ६ ७३, ६७८ | वई-वाणी लुंचई-लुंचन करते हैं १७२, ६७७ वईसो वैश्य ११३१ लुद्धे-लोभी ७११ वइदेही-विदेह देश के लेप्पाहि श्लेषादि द्रव्यों के द्वारा ८३० वए-जावे, क्य में, गमन कर, कहने। लोए-लोक में, उभय लोक में ६५७, ६५८, | लगी ६३३,८८१,६१४,६८६ ७२१,७५४,७६१,८१०,८५७, ६१२ घण्णो वर्ण है ८६६ १०३५, १०४६, १११७ पण्डिपुंगवो-वृष्णिपुंगव लोगम्मि लोक में वओ योवन वय-अवस्था लोगम् लोक को वक्कजडा-वक्र जड़ है १०२१ लोगागम् लोकाप १०६५ वर्क वाक्य-वचन बोले ५६१ लोगागम्मि-लोक के अप्रभाग में १०६३ पक्कम वाक्य . ६८२ लोगागंमि-लोक के अप्रभाग में १०६६ वग्गहियं-औपाहिकोपधि १०८३ लोगस्स-लोक के १०२८ | वञ्चर-जाती है ६०६, ६१० लोगवाहे-लोक का नाथ , ६५५ | वजए-वर्जता है . .. ६६२ Ei ७२१ ७२१

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