Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 611
________________ ३६ ] उत्तराध्ययनसूत्रम् [ शब्दार्थ-कोषः ६४५ ६८६ ८७० पक्खि -पक्षियों से । ८६६ | पडिलेहिता-देखकर १०८४ पक्खिणि-पंखणी . | पडिलेहा-प्रतिलेखना में .. ७१० पक्खिहि पक्षियों ने | पडिलेहेर प्रतिलेखना करता है . ७१० पक्खी-पक्षी होता है. ६१५ पडिवजइ-ग्रहण करता है १०४६, १०६८ प्पपढाओ-अत्यन्त गाढ़ी ८३७ पडिवज-ग्रहण करके पगामसो-अत्यन्त निद्रालु ७०५ पडिवजिया अहण करके ६३५ पगाम-अकाम है, पर्याप्त है पडिवत्ति प्रतिपत्ति, भक्ति को १०११ प्रगाम-प्रकाम पडिवजयामो-ग्रहण करेंगे पगामा प्रकाम, अत्यधिक है। पडिवम्म प्रतिकार पगासे प्रकाशित होती है | पडिकमामि-निवृत्त होगया हूँ. . ७४७ पगिज्झ=अहण करके | पडिचोएइ प्रेरणा करने वाले को पञ्चयत्थं प्रतीति के लिए १०२८ प्रत्युत्तर देता है ७१५ पश्चगं अत्यंग-स्तन आदि पडिपुच्छई-पूछता है : पच्छा पश्चात् ६११, ६१६, ७०३, ७८० पडिनियत्तई-पीछे आती ६०६, ६१० ७८२,८०६, ६८४ पडिसिद्धो-प्रतिषेध किया हुआ ११०७ पच्छाणुतावेण पश्चात्ताप से दग्ध हुआ पडिसोत्तगामी अतिश्रोत का गामी .... और . . .. ११० होता हुआ ६१८ पच्छादिट्ठो उस मुनि को पीछे ही देखा ६८१ पडिसेहए निषेध करता है. ११०४ पच्छिमा-पीछे के-चरम तीर्थङ्कर के पडिसेहिए=निषेध करने पर मुनि १०२१ पडिसोउ प्रतिस्रोत ८०३ पच्छिमम्मि पश्चिम तीर्थङ्कर के १०६८ पडे-पट में पजहे-छोड़ देवे ६४७ पढमे प्रथम ८१, १०८२ पज्जलणाहिएणं अति प्रचण्ड से ५६१ पणामई देता है . ८४४, ६६८ पज्जुवट्टिओ-सावधान हुआ ७६० | पणिहाणवं=चित्त की स्वस्थता के साथ पज्जुवट्टिया सावधान हुए ६६२, ६६७ पजिओमि मुझे पिला दी . ८३५ | प्पणिही प्रणिधि १००६ पट्टिया-प्रस्थित हैं १०४६, १०५१ पणीयं-प्रणीत ६८०, ६६१, ६६५ पट्टिसेहि-शस्त्रों से ___८२१ | पतित्तम्मि-प्रज्वलित होने पर पडन्तेहि पड़ने से ८२५ पत्त प्राप्त किया है ११२० पडतीहि शखधारा के पड़ने से ६०६ पत्ताप्राप्त हो गये ६६४, ११४२ पडंति-पड़ते हैं ७४२ पत्ते प्राप्त हुआ ६४१, ६१० पडियरसी-परिचर्या-सेवा करते हो ७३८) पत्तो आप्त हुआ ७५४, ७५५, ७५७, ७५८ पडिलवधू-विनय के जानने वाले १०१० ७६३,८२४,८५६, ११०० पडिरुवं प्रतिरुप योग्य १०११ | पत्तं प्राप्त किया . २६ ७६

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