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उत्तराध्ययनसूत्रम्
[ शब्दार्थ-कोषः
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८७०
पक्खि -पक्षियों से । ८६६ | पडिलेहिता-देखकर १०८४ पक्खिणि-पंखणी .
| पडिलेहा-प्रतिलेखना में .. ७१० पक्खिहि पक्षियों ने
| पडिलेहेर प्रतिलेखना करता है . ७१० पक्खी-पक्षी होता है.
६१५ पडिवजइ-ग्रहण करता है १०४६, १०६८ प्पपढाओ-अत्यन्त गाढ़ी ८३७ पडिवज-ग्रहण करके पगामसो-अत्यन्त निद्रालु ७०५ पडिवजिया अहण करके ६३५ पगाम-अकाम है, पर्याप्त है
पडिवत्ति प्रतिपत्ति, भक्ति को १०११ प्रगाम-प्रकाम
पडिवजयामो-ग्रहण करेंगे पगामा प्रकाम, अत्यधिक है।
पडिवम्म प्रतिकार पगासे प्रकाशित होती है
| पडिकमामि-निवृत्त होगया हूँ. . ७४७ पगिज्झ=अहण करके
| पडिचोएइ प्रेरणा करने वाले को पञ्चयत्थं प्रतीति के लिए
१०२८
प्रत्युत्तर देता है ७१५ पश्चगं अत्यंग-स्तन आदि
पडिपुच्छई-पूछता है : पच्छा पश्चात् ६११, ६१६, ७०३, ७८० पडिनियत्तई-पीछे आती ६०६, ६१०
७८२,८०६, ६८४ पडिसिद्धो-प्रतिषेध किया हुआ ११०७ पच्छाणुतावेण पश्चात्ताप से दग्ध हुआ पडिसोत्तगामी अतिश्रोत का गामी .... और . . .. ११०
होता हुआ
६१८ पच्छादिट्ठो उस मुनि को पीछे ही देखा ६८१ पडिसेहए निषेध करता है. ११०४ पच्छिमा-पीछे के-चरम तीर्थङ्कर के पडिसेहिए=निषेध करने पर मुनि १०२१ पडिसोउ प्रतिस्रोत
८०३ पच्छिमम्मि पश्चिम तीर्थङ्कर के १०६८ पडे-पट में पजहे-छोड़ देवे ६४७ पढमे प्रथम
८१, १०८२ पज्जलणाहिएणं अति प्रचण्ड से ५६१ पणामई देता है . ८४४, ६६८ पज्जुवट्टिओ-सावधान हुआ ७६० | पणिहाणवं=चित्त की स्वस्थता के साथ पज्जुवट्टिया सावधान हुए
६६२, ६६७ पजिओमि मुझे पिला दी . ८३५ | प्पणिही प्रणिधि
१००६ पट्टिया-प्रस्थित हैं १०४६, १०५१ पणीयं-प्रणीत ६८०, ६६१, ६६५ पट्टिसेहि-शस्त्रों से ___८२१ | पतित्तम्मि-प्रज्वलित होने पर पडन्तेहि पड़ने से ८२५ पत्त प्राप्त किया है
११२० पडतीहि शखधारा के पड़ने से ६०६ पत्ताप्राप्त हो गये ६६४, ११४२ पडंति-पड़ते हैं
७४२ पत्ते प्राप्त हुआ ६४१, ६१० पडियरसी-परिचर्या-सेवा करते हो ७३८) पत्तो आप्त हुआ ७५४, ७५५, ७५७, ७५८ पडिलवधू-विनय के जानने वाले १०१०
७६३,८२४,८५६, ११०० पडिरुवं प्रतिरुप योग्य १०११ | पत्तं प्राप्त किया
. २६
७६