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शब्दार्थ- कोषः ]
पत्थं- पथ्यरूप उपदेश,.
पत्थओ चल पड़ा ६२७ पत्थिवा- हे पार्थिव ! ७२,८८,८८१ पन्नता=प्रतिपादन किये हैं ६६३, ६६४, ६६५ पर्व-प्रज्ञावान् (बुद्धिमान् ) १०८० १०२०, १०२५, १०६७ ६४२, ६५८
६४५
५६६
पन्ना=प्रज्ञा
पन्ने=प्रज्ञावान्
पन्तं = निस्सार
पप्पोति प्राप्त होता है
हिन्दी भाषाटीकासहितम् ।
प्पभा=प्रभा वाली.
पभायम्मि = प्रातः काल में
पभू - समर्थ पभूय-प्रभूतः पभूया = प्रभूत हैं.
पभूयधणसंचओ = प्रभूतधनसंचय नाम..
वाला
पभूयं = बहुत है.
मज्जेज = प्रमार्जन करे.
पमत्त = प्रमत्त होकर पत्ते प्रमत्त होकर पमाए = प्रमाद किया जावे
पमाया=प्रमाद से
पमुहरी = विना सम्बन्ध प्रलाप करने
वाला
पोयन्ति = आनन्द मनाते हैं. पतु छोड़कर पयति = छोड़ते हैं
पयाहिण-प्रदक्षिणा परक्कमो = पराक्रम करने वाला परगेहंसि=पर घरों में परत्थ लोप = परलोक में परपासण्ड=परपाखंड के परम संवेगं = उत्कृष्ट संवेग को परमतिक्वं अत्यन्त तीक्ष्ण
६३३ | परमदारुणा=अत्यन्त कठोर
८८०
५६६
१०८४
७१० ७०६, ७१० ५६८ |
८६६
परमदुक्खिया = परमदुःखी होकर परमट्ठपरहिं=परमार्थ पदों में परमतेहिं तथा गृहों के कार्यों से.
परमा= उत्कृष्ट अत्यन्तः परमाइ=परम परमो = उत्कृष्ट
परलोप = परलोक में.
पर लोगे = परलोक में
७४७
८३६
२२.
८६८
८५७
६६७
६५७ | परस्स= दूसरे का
८६५, १०८६
८६४
पराजियं = त्री परिषह से पराजित था ६८५ परिग्गह = परिग्रह का
८०१
७६६ ८६६ | परिग्गहारंभनियतदोसा = परिग्रह और आरम्भ रूप दोष से निवृत हुई ६२७
६१६
परिटुप्प= स्थापन करके
५८६
परिणामो = परिणाम
७८६
परिष्ायंते = सर्व प्रकार से परिभ्रमण
[ ३७
करता हुआ परिचत्तं = त्यागे हुए परिचज्ज = छोड़कर परिश्वत्ता = सर्वप्रकार से
प्टर
७३३
६४६
५६६
६२४
७१७, ७३०, ७६४ त्यागी हुई,
अतः
परिचाई = त्याग करने वाला
७६७
७११ | परिचागो = परित्याग करना ६२८ | परितप्यमाणं = सर्व प्रकार से सन्तप्त हृदय ५६१ ७६५ | परितप्यमाणो = सर्व प्रकार से तपा हुआ ५६६ ६२६ | परितावम् = परिताप को
१३
६७६
७१६
८७०, १२३ परिधाव = चारों ओर भागता है। ७६४ परिधावई - सर्व प्रकार से भागता है ७१७ | परिनिब्बुडे - निवृति मोक्ष को प्राप्त हुए
१०४७
१०४५
७१६ ६३८, ७४१, ७५१ ७१६ | परिभाय =ज्ञ परिज्ञा से जानकर और प्रत्या- : ६३३ ख्यान परिज्ञा से छोड़कर ६४६, ६५१
१ | परिभास ई = कहता है
७३७