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शब्दार्थ-कोषः ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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PATRIKA
निरहंकारो अहंकार से रहित ८५४ । नीसंक-शंका से रहित होकर ८०७ निव्याणमग्गं निर्वाण मार्ग को १४५ नीहरंति=निकाल देते हैं ७३३ निव्वाणगुणावहं निर्वाण के गुणों को नु-वितर्क अर्थ में है १००८, १०१६, १०२६ .. धारण करने वाली और ८६३ | नेच्छन्ति नहीं चाहते
६८७ निव्वाणं-निर्वाण १०६५, ११२० नेच्छई-नहीं चाहता
७१८ निव्वाहणाय-वस्त्रादि के लिए अपितु ११०८ | नेत्त-नेत्रौषधि . निविएणकामोमि-मैं निवृत होने की नेव भुंजई-उपभोग नहीं करती थी 8
___कामना वाला हो गया हूँ, अतः ७७६ नेव और नहीं ६०६, ६१३, ६२५, ७२६ निविण्ण-उद्वेग से युक्त ५८२ नेह-स्नेह
१०३७ निविसयाविषय रहित ६३४ नो-नहीं ६६६, ६६७,६६६, ६७०, ६७१ निवा-हे नृप!
६७२, ६७३, ६७५, ६७६, ६७८ निवो-नृप
. ७२७ ६८०, ६८१, ६८३, ६८५, १०४२ निव्वेय=निर्वेद-विषयविरक्ति-विषयों से ... नो इच्छई-नहीं चाहता .. उपरामता को
७३५ नोवयइन कहे निसम्म विचारपूर्वक सुनकर ६६३, ६६४ नोविय और न
६४५ • ६६५, ८६१ नो पडितप्पई-सेवा नहीं करता ७०६ निसामिया-सुनकर
७१० नो फासयई-सेवन नहीं करता निस्सेसं कल्याणकारी ६६७ । नो वलिप्पईकर्मों से लिप्त नहीं होता ११३८ निसीयई बैठ जाता है ७१३, ६८२ | नो हीलए-इनकी हीलना न करे ६५६, ८४८ निसण्णा=बैठे हुए
१०१३ निसनं बैठा हुआ . . निस्संगो-संग से रहित ८५४ पइगिज्म लेकर
६२७ निसिजं-स्वाध्याय-भूम्यादि ७०८ पइठ्ठा-प्रतिष्ठान है
१०५४ निसिजाए बैठने के लिए १०१२ : पइटुं-प्रतिष्ठा रूप
१०५२ निसीयणे-बैठने में १०६३ पन्ना-प्रतिज्ञा
१०२६ निसेवियं परिसेवित और ८६६ पई यति
६२२ निसेवए-सेवन करे
| पंडजमाणो प्रयोग करता हुआ निहुओ=निश्चलचित होकर ८६८, ६८६ | पंडजेज-प्रयोग करे
१०८३ निहन्तूण-और हनन करके... १०३५ पण्डिए-पंडित
१०६७ निहुयं निश्चल और ८०७ | पओयणं प्रयोजन है
१०२८ नीइकोविए-नीतिशास्त्र का पंडित हो । पकपुब्यो पूर्व मुझे पकाया गया
१२६ | पक्कमई-आक्रमण करता है ८४७ नीरए कर्ममल से रहित ७६६ पक्को पकाया गया 'नीणेइ-निकाल लेता है .... ७६१ | पक्खंदे-पड़ते हैं .. .
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