Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 619
________________ ४४] - उत्तराध्ययनसूत्रम् [ शब्दार्थ-कोषः ६७७ | भमइ भ्रमण करता है ११३८ भमरसंनिमे-भ्रमर के सदृश कृष्णवर्ण । भाज-सेवन करता है ६४७ वाले महत्ता सेवन करके ६४५ भयंकरा-भयंकर हैं १०३७ भइणीओ-भगिनियाँ भी थीं ८८ भयहुओ-अति भयभीत हुआ ७२८ भए भय में १०७६ भयंताणं आपका मैं ८७४ भण्डगं=भाण्डोपकरण १०८३ भयहुए भयदूतों को ६६३ भएसु-भयों से ८५६ भयमेरवा-भय से भैरव-भयंकर-भय भक्त्रियव्वए भक्षण किए जाने वालों के उत्पादक ६५७, ६४० को ६६३ | भयवं-भगवान् ६७०, १०७० भक्त्री-भक्षण करने वाला ६६० | भया-भय से ११२१ भगवओ भगवान् ७३६, १२५ | | भयागरे-भयों की खान में ८१२ भगवया भगवान् ने ६६३ | भयाणगं=भयों को उत्पादन करने वाला ६३४ भगवं हेभगवान् ! ७२७, ७२८, ७२६, भयाणि भयों को-सहन किया ८११ ६३३, ६५४, १००१, १००२ | भयाभिभूया भय से व्याप्त हुए ५८४ भगवंतेहि-भगवंतों ने ६६३, ६६४, ६६५ भयावहे भयों के आवर्त वाले ११३७ भग्गचित्तो-भग्रचित हो गया ८१ भयाहि-सेवन कर ६८३ भग्गुजोयम्भमोद्योग अर्थात् संयम से भरहवासं भारतवर्ष को भग्नचित हो रहा था | भरहोवि भरत भी ७५० भजंभार्या ६३०.६५६ भरे-भरना ८०७ भन्जा-भार्याएँ ६५३, ६५४ भल्लीहिं-भल्लियों से मट-भ्रष्ट है ६०२ भव भव में भंडवालो भाण्डपाल ६६१ भवइ होता है भण-कहो ११०६ भवई होता है ८७७, ८७८,८७६ भणइ-कहता है ६६५ भवणाओ-भवन से भणई-कहता है ६७२,६७८ | भवतण्हा-भव-संसार में, तण्हा-तृष्णा भत्त-भात ६६१,८४५ १०४० भत्तं भोजन ८४४ भवन्ति होते हैं ६५७, ११३३ भत्तपाणं-भात, पानी ६६५ भवम् भव में ৩৬৪ भत्तिए-भक्ति से १२२ भवम्मि-भव में भत्तेण-भक्त से Exe भवाहि-तू हो ७२६, ६७३ भहाम्भद्रप्रकृति के ६६५ | भवित्ता होकर ५८०,808 भद्दे हे भद्रे! ६८३ भविस्सई होगी अर्थात् विषय के सेवन । भन्ते हे भगवन् ! ७०४,८७७, १०१७ करने से .६६७, ६८३ ८२१

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