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- उत्तराध्ययनसूत्रम्
[ शब्दार्थ-कोषः
६७७
| भमइ भ्रमण करता है ११३८
भमरसंनिमे-भ्रमर के सदृश कृष्णवर्ण । भाज-सेवन करता है ६४७ वाले महत्ता सेवन करके ६४५ भयंकरा-भयंकर हैं
१०३७ भइणीओ-भगिनियाँ भी थीं
८८ भयहुओ-अति भयभीत हुआ ७२८ भए भय में १०७६ भयंताणं आपका मैं
८७४ भण्डगं=भाण्डोपकरण १०८३ भयहुए भयदूतों को
६६३ भएसु-भयों से
८५६ भयमेरवा-भय से भैरव-भयंकर-भय भक्त्रियव्वए भक्षण किए जाने वालों
के उत्पादक ६५७, ६४० को
६६३ | भयवं-भगवान् ६७०, १०७० भक्त्री-भक्षण करने वाला ६६०
| भया-भय से
११२१ भगवओ भगवान् ७३६, १२५ | | भयागरे-भयों की खान में ८१२ भगवया भगवान् ने
६६३ | भयाणगं=भयों को उत्पादन करने वाला ६३४ भगवं हेभगवान् ! ७२७, ७२८, ७२६, भयाणि भयों को-सहन किया ८११
६३३, ६५४, १००१, १००२ | भयाभिभूया भय से व्याप्त हुए ५८४ भगवंतेहि-भगवंतों ने ६६३, ६६४, ६६५ भयावहे भयों के आवर्त वाले ११३७ भग्गचित्तो-भग्रचित हो गया ८१ भयाहि-सेवन कर
६८३ भग्गुजोयम्भमोद्योग अर्थात् संयम से भरहवासं भारतवर्ष को भग्नचित हो रहा था | भरहोवि भरत भी
७५० भजंभार्या ६३०.६५६ भरे-भरना
८०७ भन्जा-भार्याएँ
६५३, ६५४ भल्लीहिं-भल्लियों से मट-भ्रष्ट है
६०२ भव भव में भंडवालो भाण्डपाल ६६१ भवइ होता है भण-कहो
११०६ भवई होता है ८७७, ८७८,८७६ भणइ-कहता है
६६५ भवणाओ-भवन से भणई-कहता है ६७२,६७८ | भवतण्हा-भव-संसार में, तण्हा-तृष्णा भत्त-भात ६६१,८४५
१०४० भत्तं भोजन ८४४ भवन्ति होते हैं
६५७, ११३३ भत्तपाणं-भात, पानी ६६५ भवम् भव में
৩৬৪ भत्तिए-भक्ति से
१२२ भवम्मि-भव में भत्तेण-भक्त से Exe भवाहि-तू हो
७२६, ६७३ भहाम्भद्रप्रकृति के ६६५ | भवित्ता होकर
५८०,808 भद्दे हे भद्रे!
६८३ भविस्सई होगी अर्थात् विषय के सेवन । भन्ते हे भगवन् ! ७०४,८७७, १०१७ करने से
.६६७, ६८३
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