Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 624
________________ शब्दार्थ-कोषः ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [४९ माणवेहि मनुष्यों के सम्भव हैं १४० | माहणी-ब्राह्मणी ६३८ माणसा-मानसिक ८११ माहणे ब्राह्मण ७३८, ११०२ माणसे-मानसिक १०६२ | माहणेण-ब्राह्मण के द्वारा ६२४ माणसो-मन में ७७२ | माहणो ब्राह्मण ६३८ माणुसे मनुष्य सम्बन्धी मा होमो हम दोनों न होवें, अत: ६ माण-मान का ६६३ मि मेरे ७०४ माणुसत्ते-मनुष्य भव में ७८३ | मिए-मृगों को ७२४,८४८ माणुसं-मनुष्य के ___७७६ मिए उम्मृगों को माणुसे लोए-मनुष्यलोक में ८२८ | मिओ वा-मृग की तरह ८२८ माणुस्स-मनुष्य और | मिगचारियं-मृगचर्या को ८४६,८४७,८५०, माणुस्सं मनुष्य सम्बन्धी ७४५, ६८४,८७४ माणुस्सए-मनुष्य सम्बन्धी मिगो-मृग माणुस्सएसं मनुष्य सम्बन्धी काम मिगस्स-मृग को ___ भोगों में ५८५, ५८६ मिगव्वं मृगया शिकार के लिए ७२२ माणुस्सगा-मनुष्य सम्बन्धी तथा ६५७ मिगे-मृगों को ७२५ माणुस्सा-मनुष्यों सम्बन्धी ६४० मिच्छादिट्ठी-मिथ्यादृष्टि ७४४ माणे-मान में १०७६ मित्त-मित्र मा भमिहिसिम्मत भ्रमण कर ११३७ / मित्तम्-मित्र है ८६७ मायं-समाविष्ट-अन्तर्भूत है १०७३ | मित्ता-मित्र ७३२ मायामाता ८८६ मित्तेसु-मित्रों में ७६३ माया-माया से ७४३, ६६३ मित्ते-मित्र ८५३ मायाए-माया में १०७६ मियं-मित-स्वल्प ६९२, १०८० मायओ माताएं हैं १०७१ | मियपक्खिणं-मृगों और पक्षियों का ८४१ मारिओमार दिया ८२६,८३० मियाइ-मृगा मासक्खमण-मासोपवास की ११०३ मिया मृगा नाम वाली ७७० मा सम्मरे मत स्मरण करो ६१८ | मियापुत्ते मृगापुत्र ८६०, ७७१, ७७४, मासिएणमासिक माहण-ब्राह्मण ६५१ मिसी ऋषि हुआ ८६० माहणकुलब्राह्मणकुल में १०६६ मुइय-प्रसन्न ..." माहणतं ब्राह्मणत्व ११३५ | मुइयं-प्रमोद वाला उसको माहणसंपया-प्राह्मण की सम्पदा से मुण्डिएण-मुण्डित होने से - ११२६ अनभिज्ञ १११६ | मुक्कयासो-मुक्तपाश और :: माहणस्स-ब्राह्मण के ५८५ मुक्खं मोक्ष को माहणं ब्राह्मण १११७,१११८, १११६, ११२१ | मुग्गरेहि-मुद्रों .. ८२६ १०३५

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