Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 609
________________ ३४ ] निग्गाही = निग्रह करने वाला निश्च= सदा निश्च सदा ही उत्तराध्ययन सूत्रम् - ११०० | निमिसंतरमित्तंपि = निमेषोन्मेषमात्र ७६४ भी ६४३, ७१०, ७७२, ८३६, १०६६ ७०० निच्चे= नित्य है। निच्चो = नित्य ६०३ निश्च सो सदा ही ६८८, ६६१, ६६३, ६६७ निच्चकाल = सदैव निश्चलं निश्चलता से Progr= निश्चय नय में निजाओ = निकला निज्जन्तो= निकलता हुआ निजाणं-निर्याण ६३२ विज्भात्ता = ध्यान करने वाला ६७२ नियत्तो = निवृत्त हो गया निज्भाएजा = ध्यान करे निज्जिया=जीते हैं। ६७३ नियण्ठधम्मम् = निर्बंथधर्म को १०३१ नियमेहिं नियमों से ५६३ नियम = नियम. निति = पहुँचाते हैं निद्दासीले = निद्राशील ७०५ निन्दापसंसासु=निन्दा और प्रशंसा में ८५५ निद्धन्त-निर्ध्यात निगुणित्ता = झाड़कर निन्नेहा=स्नेह से रहित और [ शब्दार्थ- कोषः ७६४ ६६४ तथा निमन्तिया = निमंत्रित किया है निम्मोयणि काँचली को निम्ममो = ममत्वरहित नियगाओ = अपने नियागं= नित्यपिण्ड नियमव्वए = नियम और व्रत में नियच्छद्र = बाँधता है नियण्ठे - निर्ग्रन्थ नियंठे = निर्प्रन्थ नियाण = कारण से १०२६ नियाणछिन्ने = निदान से रहित ८६६, ६६२ | नियन्तणे = निवृत्ति के लिए ६६३ निनत्तेज्ज - निवृत करे, रोके नियम- निश्चय ही निरंजणे - कर्मसंग से ह १११६ | निराणन्दा=आनन्द रहित हो गई निरामिसा= श्रामिष-धनधान्यादि ८५३ ६३४ free start= ओषधि का न करना ८४० निष्पिवासस्स = निष्पिपास-पिपासा रहित को निष्परिग्गहा = परिग्रह से रहित हुए निमंतयंतं = निमंत्रण करता हुआ निमित्त भूकंपादि वा निमित्तेण=शुभाशुभ निमित्त से निम्ममत्तं निर्ममत्व - ममता का त्याग ८१० ६३४ ५६१ ६०७ ७१७ १०६१, १०६३, १०६४. ८५६ दह ६०२ ७७४ ६०३ ६५० ६७५ ८३६ ६६२ हव्ह ६८६ ६४६ ७०३ ६५३ ७६७ ६४१ . १०६५.. से पीड़ा से रहित देखकर ७६६ निरासवे = आश्रव से रहित निरोवलेवाई = लेप से रहित ६२० ६१६ निरस्साए = स्वाद रहित है ८५४ | निरस्साविणी = छिद्र रहित ६३४ रहित निरट्टिया = निरर्थक ही ११ निर सोया = निरर्थक शोक करने वाली ६१३ निरत्थिया = निरर्थक ७४३ ८६१, ८६४ रहित निरारम्भो=आरम्भ से रहित निरामिसा= विषयरूप मांस से तथा ६२७, ६३२ निरामिसं= श्रामिष से रहित पक्षी को ६३२ १६ ६४७ ८०४ १०५६

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