Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 607
________________ ३२ ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [शब्दार्थ-कोषः wwwwww wwwwwwwwww - ~~~ ~~ न नाससिनाश को प्राप्त नहीं होता १०४६ | नरएसु-नरकों में ७७६, ८१३, ८१४, नन्नटुं न तो अन्न के लिए ११०८ ८३७,८३८ नन्दणोवमनन्दन वन के समान ८६६ नरकोडिओ-करोड़ों मनुष्यों को ७२६ नन्दणं वण-नन्दन वन हैं नरगतिरिक्खजोणि-नरक और तिर्यक् । नन्दणे-नन्दन नाम के ७७२ योनि में १०८ न पउस्सई द्वेष नहीं करता ६५३ नरदेव हे नरदेव! ६२६ न पडिमन्तेइ प्रत्युत्तर नहीं देता है ७२८ नरनारिं-पुरुष और स्त्री की संगति को ६४७ न पडिलेहईप्रतिलेखन नहीं करता ७१४ न रमाम्म्रति आनन्द नहीं पाता हूँ ८३ न पूर्य-न पूजा को चाहता है ६४५ नरस्सम्नर को न पजहामि नहीं छोड़ता हूँ ६१७ नरिंदो-नरेन्द्र . ..६१५, ८७५ न पुणब्भवामो-फिर संसार में जन्म | नरिंदवसमा नरेन्द्रों में वृषभ के समान ७६२ मरण करेंगे ६१३ नरा-मनुष्य ७३४, ७४२, ८६८, ६४१ न फिट्टई-दूर नहीं होती थी ११४० न भुंजिजा-न खावे ६९२ नराहिवे-राजा ७२५ न बुझामो बोध को प्राप्त नहीं होते नराहिवो नराधिप-राजा ७३५, ७५१, १२३ ६२८ नराहिव-हे नराधिप! नमी-नमि राजा ने ७६० नराहिवा-हे नराधिप ! ८६३ नमी राया नमि राजा ७६१ नरेसरो नरेश्वर नमो-नमस्कार हो १०६७ नलकूबरो नल कूबर के तुल्य नमेइ नम्र किया ७६० नलमे हम नहीं पाते नमोकिश्चा=नमस्कार करके ८६५ न लभामो हम नहीं प्राप्त करते ५८७ नमंसन्ता-नमस्कार करते हुए १११५ न लग्गन्ति-उनको कर्मों का बन्धन नमसंति-नमस्कार करते हैं ६६६ नहीं होता ११४० न मुच्चई नहीं छोड़ता 808 न विजई नहीं है ६२६, ८७२,८७३, १०५३ न मुछिए-मूर्छित नहीं होता ६४२ न वरं-इतना विशेष है ८४० न मरिस्सामि=मैं नहीं मारूँगा न वि=न तो ११०७, ११०८, ११०६, ११२६ न मुणि=मुनि नहीं होता ११२६ न वहिज-व्यथित नहीं होते ६४१ नयणेहि नेत्रों से प न सजइ-संग नहीं करता १११८ नयरी-नगरी जो ८८० न सोयइ सोच नहीं करता परन्तु १११८ नयर-नगर के १००४ न सेन वह ७१६ नयरम्-नगर में ६२६ न सुंदरो=सुन्दर नहीं है ७८६ नयरे नगर में ७२२, ७७०, १५२, १५४ न सन्तसेजा-त्रास को प्राप्त न होवे ६३७ न याविन ६३६, ६४५ न सेवा-सेवन नहीं करता नरए-नरक ७४२ न हुसी नहीं है . ८०१ ११२३

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