Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 588
________________ शब्दार्थ- कोषः ] कंतारे = कान्तार में (वन में) कनिगा = कनिष्ठ क = कन्या को हिन्दी भाषाटीकासहितम् । कन्थगं = जातिमान् अश्व की तरह कन्दिय सद्दं = आक्रन्दन शब्द कन्दियं =क्रन्दित शब्द कंदुकुंभीसु = कंटुकुम्भी में कंदन्तो = आक्रन्दन करते हुए कन्ने = हे कन्ये ! कप्पो = समकल्प है कप्पणीहि=कैंचियों से ६५६, ६५८ करकंडू = करकंडु राजा १०४८ | करन्ति = करते हैं। ६७५, ६७६ ६६० कणा - कर्म से कहि वि= किसी वस्तु पर भी कयरे= कौन कयं = किया है। ८१२ | करवत्त=कर-पत्र - आरा ८ | करकयाईहिं= क्रकचों-लघुशखों-से कपिओकाटा गया-कतरा गया कमलो = क्रम से कमलावई = कमलावती नाम की उसकी पटरानी हुई कमसोऽणुतं क्रम से अनुनय करता ८१५, ८१७ करे= करती है ८१५ | करेइ करती है ६७८ | करे उं= करना ८५७, १०२३ | करेंति=करते हैं। ८२७ |करेह = करो हुआ ५६१ कम्पिल्लुज्जाण= कांपिल्यपुर के उद्यान में ७२४ कम्पले = कांपिल्यपुर कम्मकर्मों से कम्मं कर्म को · कम्ममहावणं कर्म रूप महावन को कम्माणि कर्म कम्माणं कर्मों के ५८३ कथंजली - हाथ जोड़कर क्यावि= कदाचित् भी काई = कदाचिन् कमई की है बुद्धि जिन्होंने कयकोऊयमंखलो = किया गया कौतुक मंगल जिसका ८२७ | कलकलंताइं=कलकल शब्द करते हुए ६३६ तथा करंति करता है, पालन करता है करिस्सइ = करेगा ८१७ ८१७ ७६१ ८६० ६६६ १०५६, १०५६, १०६१ ६१० ६१० ८०६,८०७ ६६५ ११३७ ७३४, ६१६, ६६४ | कसाया = कषाय ६१८, ११३५ ६६० ८३२ कलम्बवालुयाए=कदम्बवालुका - नदी में ८१६ कलहे कलह में ७१२ ६२६ ७६१ ८६४ ८०४ ८५६ कलाओ = कलाएँ कलिंगेसु = कलिंग देश में हुआ कल्ले-नीरोग हो जाने पर ७२२ कवले = कवल की ११३२ | कसासु = कषायों से ७६४ कसिणं- सम्पूर्ण परिषहों को १०३३, १०४४ ६४३, ६४५, ६४६, ६३४ ६६४ ११२७ ३२ | कस्सअट्ठा=किस के लिए ७३४, ११३१ | कसस्सट्ठाए - किस प्रयोजन के लिए ७३८ ६४२ | कह-कहो १०२५, १११२ ६६४ कहं- कैसे ५६८, ६१६, ६२२, ६६७, ६६६, ७३४ ६७०, ७३८, ७६६, ७६६, ८७३, ८७५, ८७७, १०१६, १७२६, १०३१, १०३५ १०३८, १०४१, १०४५, १०४६, १०५६ कहावणे - कार्षापण ६०३ ६६६ ७७४ ६६६ [ १३ ६३१ २००६ | कहित्ता = कहने वाला कहि = कहाँ ६५६ | कहेमाणस्स = कहते हुए को

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