Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 591
________________ १६ ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [शब्दार्थ-कोषः ६१३ केवली-केवल ज्ञानयुक्त पुनः ६६४ | कं-कौन-सा १०५२ केवलं सम्पूर्ण . केरिसी-कैसी है १००६ खणंपि-क्षणमात्र भी ७८३,८६० केरिसो-कैसा है . १००६ खणमित्त-क्षत्रमात्र केसलोओ केशलुंचन भी ८०० खण्डाई-खंड ८३३. केसरे केसर नाम वाले में ७२४ खत्तिओ-क्षत्रिय-उसको ७३७, ११३१ केसरम्मि केसर ७२४ वत्तिय-क्षत्रिय केसे केशों को ६७२, ६७७ खंतिक्खमे-शांतिक्षम ६३६ केसि केशी के १०१६, १०१७, १०२०, खन्ती-क्षमा है ८६६ ___१०२७,१०३२, १०३६, १०४०,१०४३ खन्तीए-क्षमा से केसी केशीकुमार १०१६, १०१७, १०३२, | खन्तो=क्षमावान् ८६१,८६४ १०३६, १०४०, १०४३, १०५४,१०६७ खमयोग्य है केसीकुमार केशीकुमार ६६८, १००४ स्त्रमा क्षमा समर्थ केसीकुमार समणे-केशीकुमार श्रमण । खमे-क्षमा करो ७२७ ०११, २०१३ खयं-क्षय केसीगोयमओ-केशी और गौतम का १०६६ खलु-निश्चय ही ६६३, ६६४, ६६४, ६६७, केसिंगोयमा=केशी और गौतम १००६ ६६६,६७१,६७२, ६७३, ६७३, ६७५, केसिगोयमे-केशी और गौतम १०७० ६७६, ६७८, ६८०,६८१, ६८३, ६८५ केसवा केशव ६५३ खवित्ता-क्षय करके ६६४, ११४२ केसवो=केशव | खधेऊण-क्षय करके ६५० को-कौन ५६३, ८४१, ८४३, ८४४, १०५६, खाइम-खादिम ६५३, ६५४ कोउगासिया कुतूहल के आश्रित खाइत्ता-खाकर कौतूहली लोग १०१४ | खाए-ख्यात प्रसिद्ध कोऊहल-कौतुक में खाणी खान हैं कोहगं-कोष्टक १००४ | | खाणु-स्थाणु-ठोंठ कहते हैं कोत्थलो-वन का कोथला-थैला ८०७ खामेमि-क्षमा याचना करता हूँ १२० कोलसुणएहि-कोल, शूकर और स्वाविओमि-मुझे खिलाया ८३३ श्वानों के द्वारा जो ८२० स्त्रिप्पं शीघ्र ६६१, ७२६, १०१२, ११३७ कोषए-कोविद-विशेष पंडित था १२६ | खिसएजा-आहार के मिलने पर कोवियप्पा-कोविदात्मा ७७८ निन्दा करे कोसम्बी-कौशाम्बी ८८० | खिसई-निन्दा करता है कोहा-क्रोध से ११२१ स्वीरे-दुग्ध में कोहे-क्रोध में १०७६ | खणिसंसारो क्षीण हो गया है संसार । कोह-क्रोध और ६६३ जिसका .. १०६१ ५६५ ७०६ ६०१

Loading...

Page Navigation
1 ... 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644