Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 597
________________ २२ ] जलंतीओ-जलती हुई जलन्तंभि= जलती हुई। जलम् = शरीर का मल जलतम्मि = प्रज्वलित में वा जलते= जाज्वल्यमान जलुत्तम= उत्तम जल को जल्लियं = शरीर का मल जलियं = जाज्वल्यमान जले जल में जवा-यव जंवर = जो बर्त रहा है जवोदणं=यव का भात जवोदगं=यवों का धोवन जंसि-जिस पर जसंसी = यशस्वी - यश वाला जस्स= जिस उत्तराध्ययनसूत्रम् [ शब्दार्थ-कोषः ८३५ | जहानायं = न्यायपूर्वक १०३३, १०३७, १०३६ ८१५ १०४० ७हाभूयं = यथाभूत, यथार्थ ६१८, ११३५ ८२२ | जहाय = काम भोगों को छोड़कर ५८२, ६१४ ८२१ जहासुहं- जैसे सुख हो ७०३, ८५०, ८५१ १०४२ जहिच्छं यथा इच्छा १०८५ | जहिज = छोड़े १०१७ ६४१ जहक्क मं= यथाक्रम से जिसकी ५६६, ६११, जस्स श्रत्थि = जिसकी है जसापत्ती=यशा नाम वाली धर्मपत्नी -जैसे ८७ = छोड़कर और ६३४ ११२४ जहित्ता छोड़कर और ७५५, ७६०, ११२६ ८०५ जहिं जिसके ६१३ ७०४ | जहोइयं = यथोचित रूप में ६६६ ६५६ जा= जो ७४५, ६५८, ६७६, १०५६, १०८० ६५६ . जा जा जो जो ६०६, ६१०, ६६० ५८५, ७७६, ७७७ ५८४, ६८६ ७७५ ७७७ ६२८ ८६५ ६०३ १०४५, १०५६ |जाई = जाति को ६४८ जाई = जाति ६०० ६११ ५८३ ८२१, ६०३ ६०५, ६० ६ ५६१, ६६१ | १०३७ जहा = जैसे ५८८, ६०१, ६०६, ६१५, ६१६ ७३० ६२०, ६२८, ६३१, ६६६, ७४५, ७८६, ७६१, ८०६, ८०७ ८०८,८१०, ८१३,८१४, ८४१ ८४२, ८४३, ८४८, ८६०, ८७६, ८८१, ८८४, ८६८, ६३० ६६०, ६६१, ६६२, ६६५, १११५ ८७८ १११७, १११६, ११२४, ११४० जहा=छोड़ता है ६१७, ६४६, ८५० जहाजायत्ति = जैसे जन्म समय में शरीर अनावृत रहता है तद्वत् नम हुई को जाईसरणं = जाति स्मरण ज्ञान जाईसरणे = जाति स्मरण के जाणएसु - विज्ञपुरुषों में जाणामि = जानता हूँ जाणासि = जानते हो जाणिय = जानकर जाणे = जानता है जायइ = याचना करता है। जायई = उत्पन्न होता है, तब जायगेण = यज्ञकर्त्ता ने जायगो = याज्ञक - विजयघोष जायणा = माँगना जायरूवं = जातरूप जायं = उत्पन्न हुआ ११२४ जाया = हे पुत्र ५६०, ५६३, ६०१, ६०७, ६११ ८०६, ६८७, ६६४ ६८९ | जायाई - आवश्यक रूप यज्ञ करने वाला २०६६ जाए = उत्पन्न हुआ जाओ = हो गया ७०४७४४ ११०६ ६३७ ६११, ७४५ ६५६ ८४३ ११०७ ११०४ ७६६ १११६

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