Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 600
________________ शब्दार्थ- कोषः ] तत्ततत्व का तत्तं तत्त्व को ततो= तदनन्तर तत्ताई= तप्त तत्थ=वहाँ पर, उस श्रावस्ती नगरी में ५८५ ५८८, ६५३, ७१३, ७२४, ७२६ ७७४, ८६७, ८८०, ६१२, ६४० ६४१, ६४३, ६६३, १०००, १००४ १००५, १००६, १०१२, १०१४, २०१६ • १०५३, १०६८, १०७५, ११०१, ११०२ ११०३, ११०७ तत्थेण= त्रास से रथ और उसी भवन में तम्हा - इसलिए ५८७, ६६७, ६७३, ६७६, ६७८, ८३६ ५८३ ६६१ तद्दव्व= उस द्रव्य का तप्प तपते हैं ५६६ तप्पुरक्कारे उसी को आगे कर १०७८ तमं तमेणं अज्ञानता में - अन्धकार में ५६३ तमतमेणेव = अति अज्ञान से मुक्ति= तन्मय होकर तम् = इसलिए ६०८ १०७८ ११३६ तमेतमरूप में तयं =उस हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [ २५ १०२० | तरियो = तैरना कठिन है इसी प्रकार ८०३ १०२० तरिस्सन्ति =तरेंगे ६३५ तरूणोऽसि=तू तरुण है ७६७ ८७१ तया उस समय तू तयाणि विस्तीर्ण तरक्तर जा तरिउं=तरना तरिता - तैरकर तरंति=तैर जाते है। ८३२ | तव= तप ५८५, ६२५, ६७३, ७७४, ६०२ तवं तप को ५६६, ६३५, ७३३, ७४८, ७५६ ७६५, ६६४ ८६१. ६२०, १११६ १००५ ११२० |तवस्सी = तप करने वाला ६४५, ६४६, ६४७ तवस्स= तप के ६६६, ६७१ ६८०, ६८१ ६८३, ६८५ १०५६ ६८२, ६८६ ६२६, ८४५ तरंगे और कई एक वर्तमान काल में तर रहे हैं तव पहाणं = तपः प्रधान तवसा=तप से तवस्तिर्ण = तपस्वियों को तवस्त्रियं = तपस्वी ५८८ तत्रेण = तपसे ८४२, ८५६, ६७३, ११३० ११४२ ८०४ तवो=तप का तपः कर्म में तवोकम्मंमि = तपः कर्म में तवोधणे = तपोधन १०८८ ८६५ तसाण =सों का तसेसु = त्रसों में ८५४ तस्स = उसकी ५८३, ६८३, ७२५, ७३५, ७७० ७७५, ७६१, ८६८, ८७०, ६११, ६२६ ६३०, ६५३, ६५४, ६५६, ६६६, ६६६ ६६८, १००२, १११० ६२२ | तह= उसी प्रकार ५८३, ७३२, ६०० ६७८ तहा = उसी प्रकार ५८५, ५६६, ६१५, ७०० τος ६५० ७२१, ७३३, ७३७, ७३६, ७४५ ८०६, ८०७,८०८, ८५५, ८५७ १०६३, १०७५, १०७६ १०५८ දිපුනි १०८५ तस=नस तस पाणबीयर द्दिए=त्रसप्राणी और बीज रहित हो ७१४ ८५३ ७२४ ११२१ तहावि = तथापि ७६७ | तहाविद्द - वैसा फेंकने योग्य

Loading...

Page Navigation
1 ... 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644