Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 598
________________ शब्दार्थ-कोषः ] जायाहि = याचना करो जारिसा = जैसी जालं= जाल को जालाणि= जालों को जाहि-जालों के द्वारा जाव=जब तक जावजीवाएं = जीवनपर्यन्त जावज्जीवं जीवनपर्यन्त जावज्जीवम् = जीवनपर्यन्त जिइन्दिओ = जितेन्द्रिय वाले • जिgi = सब से बड़ा हस्ती जिइंदियं = जितेन्द्रिय के प्रति जिइंदिओ = जितेन्द्रिय जिएहि = जीवों में हित का विचार करने हिन्दी भाषाटीकासहितम् किया हुआ जिणभक्खरो = जिन भास्कर ११०४ | जीवलोगम्मि= जीवलोक में ८३८ जीविए= जीवन में ६२० जीविय= जीवन का ६२२ जीवियकारणा - जीवन के कारण से ८३०जीवियं = जीवित जीवियन्तं - जीवन के अन्त को जीवियट्ठा = जीवन के वास्ते जीवो जीव १०७७ ७६३ ६६४ जिणक्खायं = जिनेन्द्र देव की कही हुई 'जिणमग्गं - जिनमार्ग का जिणस्स = जिन भगवान् की जिणदेसिए - जिन - प्रतिपादित है जिणदेसियं = जिनेन्द्र देव का उपदेश जिया-जीते गये जीवंत जीते के साथ ६७३, ६७८ ६६४ ८०२ ६६० ७५८, १०५१, १०७३ ६६६ ६६० ७०० ६३५ १०६१ ६८४ ६७५ जिगसासणे = जिनशासन में ७३६, ७४८, ७६२ जिणाम = जीतता हूँ १०३२ जिणिंद मगं = जिनेन्द्र मार्ग की जिणित्ता - जीतकर जिणित्तु = जीतकर जिगुत्तमाणं = जिनेन्द्र भगवान् के उत्तम | ६१३, १६ जिणे- समस्त कर्मों को क्षय करने वाला [ २३ ७२६, ७३० ८५५ जुइए = ज्योति वाली से जुइमं = धुतिवाला जुए = जोड़ दिया जुगमित्तं = चार हाथ प्रमाण देखे जुत्तो = जोड़ा हुआ जुन्नो=जीर्ण ६०४ हट ६४६, ७३१, ६७६ ६६३ ६१७ १०५८ ६६२ ७४५ =२१ जुंजणे - जोड़ने में जुत्ते हिं= धर्म मय योक्त्र गले में बाँधकर प्राणियों से जुयल = वस्त्र जुयलं = युगल ५८२ १०३२ जेट्ट=ज्येष्ठ और १०३३ |जेटुं=ज्येष्ठ-बड़े जेण= जिससे जेमेइ = भोगता है जेसि= जिन से ६६८, १००१ जेहिं = जिन से १०३२ |जो = जो ७३२ १०७७ १०६३ ६५६ ६६८ जुवराया = युवराज था ७७१ जे= जो ५८६, ६४२, ६४३, ६४५, ६४८, ६५२ ८२१ ८२१, ८५३ ६१८ ६५३, ६५४, ६६३, ६६४, ६६५, ६६६ ७०३, ७०५, ७२१, ७४२, ७४६, ८०६ ८०७, ८६१, ६०७, ६११, ६४०, ६६६ १०४१, १०४६, १०६७, ११०५, ११०६ १११२, ११२२, ११३३, ११४० ८८७८ १०१० ६४६ ७१८ १०४६ ११३२ ६११, ६५२, ६५७, ७८७, ७८ ७८६, ७६१, ८००, ८०२, ८६६, ६२०

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