Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 596
________________ ७८४ ६४८ ८२७ शब्दार्थ-कोषा] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [२१ छिनो-छेदा गया ८२०, ८२१, ८२७ + जंतुणो जीव ८३१, १०२५, १०६७ जन्तुसु-जन्तुओं को देखकर छिन्न-छिन्नविद्या | जन्नट्ठा-यज्ञ के अर्थी ११०५ छिमाहि-छेदन करके ६१४ जन्नट्ठी-यज्ञ का अर्थी . १११३ छुरियाहिं-छुरियों से | जन-यज्ञ का ११०२ छुहा-भूख ७७, ७८६, ७६६ | जन्नम्मि यज्ञ में ११०३ छुहित्ता प्रेरित करके ७२४ जनवाई-यज्ञ के कथन करने वाले १११६ छूढा-गेरे हुए ११३६ जनाण-यज्ञों को १११२ जन्नाणं यज्ञों के ११३६ जनाणमुहं यज्ञों का मुख है उसको ११०६ जो ६८७. ७३४. .७४८. ३६. ६१० जमजन्नम्मि यमरूप यज्ञ में अनुरक्त १०६६ - ११६, १०५८, १०६५, १०६६, ११०६ | जम्म-मच्चु-भउ-विग्गा-जन्म-मृत्यु - १११२ .. के भय से उद्विग्न हुए तथा ६३६ जइयदि ६२५, ८६१, ६६७, ६६० जम्मदुक्खं-जन्म का दुःख ७४ जइया यजन करने वाले हैं . ११३६ जम्माई-जन्म ८१२ जइवा यदि वा ७३४, ११२१, ११२२ | जयं यतमान–यतन वाला १०८२, १०८४ जइसि-यदि तू ८६ जई-यति साधु १०६१, १०६३, १०६४ १०८२, १०८४, जया जिस समय ६२६, ७३०, ८४५ जयर-यजन करता था जक्ख-यक्ष . ११०२ जयघोसविजषघोसा जयघोष और जक्खरक्खसकिन्नराम्यक्ष, राक्षस और किन्नर विजयघोष ११४२ जगं-जगत् जला रहा हैं ६२५, ६२८ जयघोसस्स-जयघोष के जगे-लोक में ७६३ जयघोसंजयघोष ११३४ ज्झाण-ध्यान से १०६६ जटुं-यज्ञ ११२७ जयणा-यतना १०७६ जणनो-पिता ६५८ १०७४ जत्थ-जहाँ ७१३, ७३१, ७८४, १०६३ | | जयनामो-जयनामा चक्रवर्ती १०७३ जरं-जरा को जत्था जिन में ६४१ | जरा-बुढ़ापा ५८४, ७८३, ८१२, १०५४ जत्तत्थं संयम यात्रा के लिए ६९२, १०२८ जन्तवो जीव १०४६ जराए-जरा से ७६१ जन्ति जाती हैं ६०६, ६१० जरादुक्खं बुढ़ापे का दुःख ७४ जन्ती जाती हुई ६८० जलं-जल को .८२४, १०४४ ६९ .११४१ ७२४ जयघोसि-जयघोष... . जयणाइयतना-: .

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