Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 594
________________ शब्दार्थ- कोषः ] घोरा=भयंकर घोरे-घोर में घोरं अति विकट च = और, फिर, तथा पादपूर्ति में हिन्दीभाषाटीकासहितम् | [ १९ ८८२, १०४१ | चव्विहा = चार प्रकार की १०७६, १०८६ १०६२ ७४२, १०५६, ११३७ ६३५, ८००, ६७८ च समुच्चय में, पुनः, ५८५, ५६१, ५६६ ५६८, ६०३, ६११, ६१७, ६२३, ६३१ ६३८, ६४५, ६४६, ६५६, ६८८, ६६१ ६६४, ६६५, ६६६, ७००, ७०६, ७१२ ७१८, ७३१, ७३२, ७४०, ७४२, ७४६ ७४८, ७४६, ७७२, ७७७, ७७६, ७८५ ७६८, ७६६, ८०३, ८०४, ८०५, ८११ ८२८, ८५३, ८६१, ८६३, ८६५,८७७ ८७८, ८८२, ८, ८३, ८६५, ८६७ ६३४, ६३५, ६३६, ६४४, ६४५, ६६० ६६३, ६६४, ६६८, ६७३, ६७६, ६८६ ६६,६६३, १०१६, १०२८, १०२६ १०४६, १०७६, १०७७, १०७८ १०८५, १०८६, २०६३, ११०६ १११२, ११२७ चइत्ता छोड़कर ६३४, ७५२, ७५३, ७५६ _ ७५६, ७६३, ७८५ चउं छोड़ करके चयन्वे छोड़ने वाले चक्क-चतुष्पथ को चक्कं चतुष्क- आहार-वस्त्र, पात्र और शय्या की चउकारण= चार कारण से उत्थी = चौथी चंडरंगिणीए - चतुरंगिणी चार प्रकार की विवि आहारे=चार प्रकार का आहार चंपाए = चंपा नगरी में चर=आचरण कर जो चरई = चलता है चरण = चारित्र के ७३६ | चरणं चारित्र है ७८२ | चरणेण = चारित्र से ७७३ | चरणस्स=चारित्र की १०८२ १०७४ १०८६, १०६२ ६६१ ७४० चउहिं= चार चक्खुसा=आँखों से १०७७, १०८४ चक्खु गिज्=चतुर्मा विषय ६८६ चक्कवट्टी=चक्रवर्त्ती ७५२, ७५३, ७५४, ७५६ चक्के = चक्र से ६६१ चण्ड = प्रचंड ८३७ चश्चरे =बहुपथों को ७७३ ७३१ ७०६ चंचल = चंचल है चण्डे क्रोध से युक्त चत्तगारवो = त्याग दिया है गर्व जिसने ८५४ चंदण - चंदन का लेप करता है - किन्तु दोनों पर चन्दं = चन्द्रमा को चन्दसूरसमप्पभा = चन्द्र और सूर्य के समान प्रभा वाले चन्दो = चन्द्रमा है चंपं= चम्पा में ७६८ चरिउं= आचरण करना चरिज = आचरण करे ८५७ १११५ | चरितं = चारित्र १०१३ १११३ ६२६ चरितम् = चारित्र चरित्ताणं = आचरण करके २५ ७४६ ह चरंति= आचरण करते हैं वा प्राप्त होते ७०६, ८४२ ७३६, १००२ ६२१, १०६५ ८०४,६४८ ६३५, ६३६ चरित्ता=आचरण करके ७४२, ८४६, ८४७ १०२६ १०७५ ८५ह १०६५ ६१६ ६६४

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