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२०]
। उत्तराध्ययनसूत्रम्
[शब्दार्थ-कोषः
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१००५
५०७
भ
.६६६
चरित्तेणं चारित्र से .... १७३ | चित्तमन्तम्-चेतना वाले पदार्थ ११२२ चरित्ते-चारित्र
८०५ चिंतावरो-चिन्ता युक्त चरिमाणं चरम मुनियों का कल्प १०२३ चित्ताहि-चित्रा नक्षत्र में , १७१ चरियं-चारित्र
चिन्ता-शंका चरिस्सामुग्रहण करेंगे
चिंतंतो-चिन्तन करता हुआ चरिस्सामि-आचरण करूँगा ६१७, ६२७ चिन्तइत्ता चिन्तन करके ८६३ .
६४०, ८४२, ८५०, ८५१ | चिन्तेइ-मन में चिन्तन-विचार करते चरिस्समो-आचरण करेंगे ८४ चरिस्ससि-ग्रहण करना ८०६ | चिरंपि-चिरकाल तक ६०२, १०४ और
८३२ चीवराणि-वस्त्रों को ..६८१ चरे-विचरता हैं ६३३, ६४३, ६६८, ७३३ चुए च्युत होकर
७४५ ७४८, ७५३, ७५६, ७५८, ७५६ चुओ-च्युत . ७७६,808
७६३. 66 चुडामणी-चूड़ामणि-आभूषण , ६६० चरेज-विचरे
६४२ चुण्णिओ-चूर्ण किया गया ८३२ चाउज्जामो-चतुर्यामरूप १००७, १०१८ चुया वहाँ से च्यवकर
५८० चाउप्पायं-चतुष्पाद-वैद्य, ओषधि, चेइए-चैत्य में .
_आतुरता और परिचारक ८८४ चेयसा=चित्त से ७४८, ७६५, ८७६, १२२ चाउरते-चार गति रूप अवयव में ८१२ चेव='च' और 'एव' निश्चयार्थक है। चामराहि-चामरों से
६००, ७०६ चारु-सुन्दर
६८६ चोइओ प्रेरणा करने पर ७१५, ७५६, ७६० चारुभासिणी-मनोहर भाषण करने
वाली चारुपेहिणी-सुन्दर देखने वाली १५७ छत्तेण-छत्र से चावेयव्वा-चर्वण करने ८०५ छन्द-अभिप्राय चिआसु-चिता में
८२३ छंदेणं-स्वेच्छापूर्वक-खुशी से चिगिच्छई चिकित्सा करता है ८४३ छित्ता-छेदन करके ६३३, १०३५, १०३६ विगिच्छगा=चिकित्सा करने वाले ८८३ | छिंदइ-छेदन कर सकता चिच्चा-छोड़ करके ६६०, ६३५, ७३७ | छिन्दई छोड़ता है। ___७५०, ७५६ छिन्दित्ता-छेदन करके
१०३७ चिट्ठा-ठहरती है १०३८, १०४१ छिदितु-छेदन करके
६२० चिटई-स्थित है
१४६ | छिन्नसोए छेदन कर दिया है शोक को चिट्ठति ठहरते हैं. १०५६, १११५ जिसने
६४६ चिट्ठसि-तू ठहरता है १०३१ छिन्नपुव्वो-छेदन किया पूर्व में ८१७, ८२५ चिण्णाई-आचरण की हुई ६४७ छिन्ने छेदन हो जाने पर १०६७, ११३४
८२१
६८३