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शब्दार्थ-कोषा] हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[२१ छिनो-छेदा गया ८२०, ८२१, ८२७ + जंतुणो जीव
८३१, १०२५, १०६७ जन्तुसु-जन्तुओं को देखकर छिन्न-छिन्नविद्या
| जन्नट्ठा-यज्ञ के अर्थी
११०५ छिमाहि-छेदन करके
६१४ जन्नट्ठी-यज्ञ का अर्थी . १११३ छुरियाहिं-छुरियों से
| जन-यज्ञ का
११०२ छुहा-भूख ७७, ७८६, ७६६ | जन्नम्मि यज्ञ में
११०३ छुहित्ता प्रेरित करके
७२४ जनवाई-यज्ञ के कथन करने वाले १११६ छूढा-गेरे हुए ११३६ जनाण-यज्ञों को
१११२ जन्नाणं यज्ञों के
११३६
जनाणमुहं यज्ञों का मुख है उसको ११०६ जो ६८७. ७३४. .७४८. ३६. ६१० जमजन्नम्मि यमरूप यज्ञ में अनुरक्त १०६६ - ११६, १०५८, १०६५, १०६६, ११०६ | जम्म-मच्चु-भउ-विग्गा-जन्म-मृत्यु
- १११२
.. के भय से उद्विग्न हुए तथा ६३६ जइयदि ६२५, ८६१, ६६७, ६६०
जम्मदुक्खं-जन्म का दुःख ७४ जइया यजन करने वाले हैं . ११३६
जम्माई-जन्म
८१२ जइवा यदि वा ७३४, ११२१, ११२२
| जयं यतमान–यतन वाला १०८२, १०८४ जइसि-यदि तू
८६ जई-यति साधु
१०६१, १०६३, १०६४ १०८२, १०८४, जया जिस समय ६२६, ७३०, ८४५
जयर-यजन करता था जक्ख-यक्ष .
११०२
जयघोसविजषघोसा जयघोष और जक्खरक्खसकिन्नराम्यक्ष, राक्षस और किन्नर
विजयघोष
११४२ जगं-जगत् जला रहा हैं ६२५, ६२८
जयघोसस्स-जयघोष के जगे-लोक में
७६३ जयघोसंजयघोष
११३४ ज्झाण-ध्यान से
१०६६ जटुं-यज्ञ
११२७ जयणा-यतना
१०७६ जणनो-पिता ६५८
१०७४ जत्थ-जहाँ ७१३, ७३१, ७८४, १०६३ |
| जयनामो-जयनामा चक्रवर्ती
१०७३ जरं-जरा को जत्था जिन में
६४१ | जरा-बुढ़ापा ५८४, ७८३, ८१२, १०५४ जत्तत्थं संयम यात्रा के लिए ६९२, १०२८ जन्तवो जीव १०४६ जराए-जरा से
७६१ जन्ति जाती हैं ६०६, ६१० जरादुक्खं बुढ़ापे का दुःख ७४ जन्ती जाती हुई
६८० जलं-जल को .८२४, १०४४
६९
.११४१
७२४ जयघोसि-जयघोष...
.
जयणाइयतना-: .