Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 589
________________ १४ ] उत्तराध्ययनसूत्रम् [ शब्दार्थ-कोषः ६०६ ६६० कहेजा-कहे ६६६ | कालओ-काल से १०७६, १०७७ का-कौन सी ६०७, १०४०, १०५७ कालकूडं-कालकूट काऊं-सम्पादन करने के लिए १६६, ६६३ | कालगच्छवी-कृष्ण कांति वाला था १५५ काऊं-करके . ६८२ | काले प्रस्ताव में ६९२,७४८, १०७५, १०८० काउण-करके ८७०, १२३ कालेण-काल में ६३७, २०७४ काऊणं करके ___७६ कालेणं-काल में १००१, ११०२ काणण-वृक्ष ७७० कालेण कालं यथा समय के अनुसार कामकमा स्वेच्छापूर्वक विचरने वाले ६३० क्रियानुष्ठान करता हुआ १३७ कामगुणा-कामगुण ५६६,६१६ कालो-काल है समय है क्योंकि ६१४ कामगुणे-कामगुणों से ५८४, ६१६, ६२० कावि-थोड़ी भी १०० ६२६, ६३५, ६६३ कावोया कपोत के समान ८०० कामगुणेहि कामगुणों से निमंत्रण कासवो-काश्यप ऋषभ देव हैं १११३ करता हुआ ५६१, ६०० | कासिरायावि-काशिराज भी कामहुहा-कामदुघा . ८६६ | काहए-कथन किया है ६१७ कामभोगरसन्नुणा-कामभोगों के रस काहामि-करूँगा ७०४ ___को जानने वाले को ७६६ | काहिसि-करेगा कामभोगा-कामभोग ५६५, ६९६ किञ्च-करणीय कार्य है ५६ कामभोगे-कामभोगों को ६३४, ६६७,७६४ किच्चा करके ७६५ कामभोगेसु-कामभोगों में ५८५, ६२८ किड्-क्रीड़ा कामरागविवडणी-कामराग को बड़ाने कित्तयओ-कहते हुए १०७६ वाली ६८७ किरिय=क्रियावादी ७४०,७४६ कामलालसा काम भोगों की लालसा | किलेसइत्ता-क्लेशित करके ६०२ ___ करने वाले ११४० | किलंतो-लान्त होकर ६२४ कामाई-कामभोगों को छोड़कर ७५० ११२० कामे कामभोगों को ६३३ किंनाम=नाम ७०४ कामेसु-कामभोगों में ६३१ किं-क्यों ७२६, ७३०,१००८, १०१६, १०२६, कामेहि कामभोगों से जो ११२४ १०६२ काय-काया ६५४, ११२३ किंगुत्ते-क्या गोत्र है ७३८ काय-काया को १०६४ किंचि-किंचिन्मात्र ६१३,६२६, ६५४, ७१०, कायगुत्ती कायगुप्ति १०७२ ६०६ कायगुत्तो-कायगुप्त ६६४ किंचिवि-किंचित् भी ८१० कायेण-काया से ६४७ | किन्नरा=किन्नर १०१६ कारणं कारण है १००८, १०१६, १०२६ किंनामे-क्या नाम है ७३८ कारणाकारण से ८८५,६६७ किंपमासई-क्या २ नहीं बोलते ७४० किसं-कृश .

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