Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 587
________________ १२] उत्तराध्ययनसूत्रम् [शब्दार्थ-कोषः annanna ६८४ . ओ १०८३ क एत्थ-इस मृगवध के सम्बन्ध में ७२७ | एसणिजस्स-निर्दोष पदार्थों का ७६५ एमे-इसी प्रकार ६१६ | एस-यह ७००, १०५१ एमेव-इस प्रकार ६०१, ६१३ एसा यह ७६७, ८८४, ५, ८८६, ८८७, एयम्-इस ८७१ ८,८६० एयं यह पूर्वोक्त वाक्य को ५६३, ६३३, ७४३, | एसो यह ६०६ ७५०, ८१०, ८४१, ६६७, १११२ एहि-इधर आ एयाई-ये अनन्तरोक्त १०८० एयाओ-ये १०६५, १०७३, १०८६ | ओइण्णो उतरे ६७१ एयारिसे एतादृश ७१६ | ओंकारेण ओकार पढ़ने मात्र से . ११२६ एयारिसीह-इस प्रकार की ६६२ | ओभासई-प्रकाशमान है। ६४८ एरिसं-इस प्रकार का ७४ | ओरुष्भमाणा-रोके हुए ६०६ परिसे इस प्रकार की ८७७ | ओसहं-औषध लाकर एव=निश्चय हो, पादपूरणार्थक है, ओहिनाण-अवधि ज्ञान १००० तरह, तैसे ६१४, ६३८, ६५६, ओहोवहो ओघोपधि ६६४, ७३१, ७३२, ७६८,७६६, ८०३, ८०४,८०५, ८११,८२८,८६५,६०३, कए किया गया . १०२१ ६१७, ६७६, १०२६, १०६५, १०७१, कओ किया है १२०, ६६६ १०७६,१०७८, १०८५, १०८६, १०६३, क्खवियासवे-क्षय किए हैं आश्रव जिसने ७२५ ११०५, ११०८, ११०६,१११२,११३३, कंखा-कांक्षा ६६७, ६६६, ६७१, ६७३, ११३६ ६७६, ६७८,६८०,६८१,६८३,६८५ एवं इस प्रकार, उसी प्रकार, पूर्वोक्त ६०८ |क्खेवयमोक्खं आक्षेपों के उत्तर ६३६, ६६३, ७८६, ८, ७८६, . देने में . १११० ७६१, ८४१, ८४२, ८४७, ८४८, कंखे-इच्छा करे कि , ८५०, ८५२, ८५६, ८६०, ८७३, | कज-कार्य में १०१६, १०२६ ८७५, ८८१, ८६३, ६२१, ६७४, | कंचुयं कंचुक को ६६१, ६६५, १०२७, १०६७, ११२४, | कंची-कोई ११३३, ११३४, ११४०, ११४१ कट्टु-करके १०६ एवम् इसी प्रकार ___८१०, ८६१ | कंटगाइण्णे-काँटों से आकीर्ण-व्याप्त ८१८ एवमेव-इसी प्रकार ६२८,८४७ कहोकड्ढाहि=कर्षणापकर्षण करके मुझे। एवमेवं-इसी प्रकार ___५८ दुःख दिया, जो कि अति ८१८ एसणं-एषणा दोषों शंका आदि दोषों | कंठछित्ता-कंठच्छेदन करने वाला ११० ६११ कदुय-कटुक एसणा-एषणा एसणाए एषणा में कणिढगा-कनिष्ठ-छोटे १०० | कत्ता-कर्ता है ७. ८६७

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