Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 585
________________ १०] उत्तराध्ययनसूत्रम् [शब्दार्थ-कोषः उ .६१७ १०८२ | उज्झित्ता-त्याग कर उ-निश्चय ही ५६५, ६३३, ७०३, ७०५, उट्टिओ-उत्थित हो गया हूँ ७४८ ७२१, ७२६, ७३४, ७७२, ७७४, | उड्डपठओ-ऊँचे पाँव और . ८१५ ८०४, ८११, ८१६, ८४२, ८५६, उहुं-ऊँचा ८१७, ८४७ ८७०, ६०८,६११,६२५, ६७१,६७५, | उण्हा-उष्ण है ८१३ ६८०, १०२१, १०२३, १०२६,१०३२, उण्हाभितप्तो-उष्णता से अभितप्त होकर १०३८, १०४२, १०५६, २०७३ ८२५ ११२१, ११४० उण्हो-उष्ण है ८१३ उइन्ति-उदय होते हैं १४० उत्तम उत्तमे-उत्तम ७५६, १०५१ उकित्तो-उत्कर्तन किया गया, चमड़ी | उत्तमंगं मस्तक में उत्तम-उत्तम उतार दी गई ८२७ ८६१, १०५४, १११५ उत्तमट्ट-उत्तमार्थ-मोक्ष के. उग्ग-प्रधान ११०७ उग्गं प्रधान ७६५, ७६६, ६६४ उत्तमट्टे-उत्तम अर्थ को भी ६११ उत्तमाई-उत्तम उग्गओ-उदय हुआ है १०६०, १०६१ ६६२ उत्तमाउ-उत्तम उग्गंमुप्पायणं-उद्गम और उत्पादन दोष ६७१ | उदगेसु-प्रधान ५८२ उच्चारं पुरीष मल १०८५ उदारा प्रधान ६२१ उच्चाराईणि-उच्चारादि को उदाहु-कहने लगे ५८६, ६१८, ११३५ उच्चारे उच्चार १०७२ उदाहरे-कहने लगा , ६८२ उच्छित्तु-उच्छेदन करके १०४० उदिएण-बलवाहणे-उदय हुआ है बलउच्छ्रवा-इतु की तरह सेवा वाहन-अश्वरथादि जिसके ७२२ उजाण-क्रीड़ा आरामों से ७७० | उदीरेइ-उदीरता है ७१२ उजाणम्मि-उद्यान में ११०१ उद्देसियं-ौदेशिक ६०६ उजाणं-वह उद्यान था ८६६, ६७१, १०००, उद्दायणो-उदायनराजा १००४ उद्धत्तुं-उद्धार करने में उजाणे-उद्यान में ७२४ उद्धरित्ता-उखाड़ कर १०३६ उज्जुकडा-सरलता-पूर्वक अनुष्ठान करने । उद्धरिया उखेड़ी १०३८ वाली उन्मायं-उन्माद को उज्जुजड्डा-ऋजुजड़ थे १०२१ | उपसंहोवश में किया ६६३ उज्जुकडे-ऋजुकृत उप्पह-उत्पथ से १०७५ उज्जुओ-उद्यत हो गया उप्पजई-उत्पन्न हो जाता है ७०४ उज्जुभावं=ऋजुभाव को उभओ-दोनों के १००५, १००६, १०१३ उज्जुपना-ऋजुप्राज्ञ है १०२१ | उभओविन्दोनों ही १००४ उज्जोयं-उद्योत १०५६, १०६०, १०६१ ) उम्मग्ग-उन्मार्ग में १०४६, १०५१ १०८८ ८१६ ११३६ ६२७ ६४० ६४५

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