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उत्तराध्ययनसूत्रम्-
[एकविंशाध्ययनम्
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टीका-प्रस्तुत गाथा में इस बात को व्यक्त किया गया है कि भगवान् महावीर स्वामी के सदुपदेश से अनेक भव्य जीवों को सद्बोध की प्राप्ति हुई । जैसे कि चम्पा नाम की नगरी में एक बड़ी विशाल वैश्य जाति निवास करती थी। उसी जाति में से पालित नाम का एक व्यापारी श्रावक था, जो कि भगवान महावीर स्वामी का शिष्य था । यहाँ पर भगवान के विषय में महात्मा शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया है कि उनके विना अन्य जितने भी छद्मस्थ आत्मा हैं वे सब शांति आदि गुणों के धारण में इतने बलवान् नहीं, जितने कि भगवान महावीर स्वामी थे। यथा-'खंति सूरा अरिहन्ता' क्षमा में शूरवीर अरिहंत ही होते हैं, अतः भगवान् ही महान् आत्मा हैं।
__ अब उस श्रावक के विषय में कहते हैंनिग्गंथे पावयणे, सावए से वि कोविए। पोएण ववहरते, पिहुंडं नगरमागए ॥२॥ नैर्ग्रन्थे प्रवचने, श्रावकः सोऽपि कोविदः । पोतेन व्यवहरन्, पिहुण्डं नगरमागतः ॥२॥ .
पदार्थान्वयः-निग्गंथे-निर्ग्रन्थ के पावयणे-प्रवचन में से-वह सावएश्रावक वि-अपि-भी कोवए-कोविद-विशेष पंडित था पोएण-पोत से ववहरतेव्यवहार करता हुआ पिहुंडं-पिहुंड नामा नयरम्-नगर में आगए-आ गया।
मूलार्थ—वह श्रावक निर्ग्रन्थप्रवचन के विषय में विशेष कोविद अर्थात् पंडित था और पोत से व्यापार करता हुआ पिहुंड नामा नगर में आ गया ।
टीका-चम्पा नगरी का वह पालितनामा श्रावक, केवल नाममात्र का श्रावक नहीं था किन्तु व्यापारी होने के साथ २ वह निम्रन्थ प्रवचन का भी पंडित था। अर्थात् शास्त्रों के रहस्य का वेत्ता और जीवाजीवादि पदार्थों के मर्म को जानने वाला था। उसका व्यापार जहाजों के द्वारा चलता था। अत: जहाज से व्यापार करता हुआ वह पिहुंड नाम के किसी नगर में पहुँचा । प्रस्तुत गाथा के भाव से व्यक्त होता है कि देशविरति-श्रावक—को एकमात्र अनर्थदण्ड का ही त्याग है, सार्थदण्ड का