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३४ तत्वज्ञान तरंगिणी प्रथम अध्याय पूजन आकुलता क्षय हो जाती है होती कर्ता बुद्धि विनाश ।
ऐसा भान त्वरित होता है, जब होता है ज्ञान प्रकाश ॥ ॐ ह्रीं प्रथम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय संसारताप विनाशनाय चंदनं नि..
शिवसुख की वेला आयी। निज ज्ञान तरगं सुहायी ।
अक्षय पद निज प्रगटाऊँ। दृढ़ तत्त्वज्ञान उर लाऊं ॥ ॐ ह्रीं प्रथम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतं नि ।
बन शील स्वगुण का स्वामी । निष्काम बनूं गुणधामी ।
चिरकाम व्याधि विनशाऊं । दृढ़ तत्त्वज्ञान उर लाऊं ॥ ॐ ह्रीं प्रथम अधिकार समन्वित श्री तत्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय कामबाण विनाशना पुष्पं नि. ।
यह क्षुधा व्याध विषपायी । भव भव तक है दुखदायी ॥
चिर क्षुधारोग विनशाऊं । दृढ़ तत्त्वज्ञान उर लाऊं ॥ ॐ ह्रीं प्रथम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं नि. ।
मोहान्ध घोर अज्ञानी । कब तक होऊंगा ज्ञानी ॥
निज ज्ञान दीप उजियाऊं । दृढ़ तत्त्वज्ञान उर लाऊं ॥. ॐ ह्रीं प्रथम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तसंगणी जिनागमाय मोहन्धकार विनाशनाय दीपं नि. ।
निज ध्यान धूप उर लाऊं । वसु कर्म नाश सुख पाऊं ॥
.पद नित्य निरंजन पाऊं । दृढ़ तत्त्वज्ञान उर लाऊं ॥ ॐ ह्रीं प्रथम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि. ।
अब महामोक्ष फल लाऊं । धुव ध्यान महान सजाऊं ॥
फल शुक्ल ध्यान का पाऊं । दृढ़ तत्त्वज्ञान उर लाऊं। ॐ ह्रीं प्रथम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोक्षफल प्राप्ताय फलं नि ।
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