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२४३ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान स्वध्याय से सातों तत्त्वों का हो जाता सम्यक् ज्ञान । स्वाध्याय से आत्म तत्त्व की हो जाती सम्यक् पहचान ||
पूजन क्रमांक १३
तत्त्वज्ञान तरंगिणी द्वादशम अध्याय पूजन
स्थापना
छंद गीतिका तत्त्वज्ञान तरंगिणी का द्वादशम अध्याय है । शुद्ध निज चिद्रूप ही तो मुक्ति सौख्य प्रदाय है | शुद्ध निज चिद्रूप की उपलब्धि का कारण महान ।
असाधारण श्रेष्ठ रत्नत्रय परम भव जलधियान ॥ ॐ ह्रीं द्वादशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं द्वादशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठः स्थापनं । ॐ ह्रीं द्वादशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहिीत भव भव वषट् ।
अष्टक
छंद पयूष राशि तत्त्वज्ञान तरंग की पायी हिलोर ।
नाच उट्ठा आज मेरा ह्रदय भोर || ज्ञान जल से करूंगा अभिषेक आज |
जन्म मृत्यु जरा हरूंगा नाथ आज || ॐ ह्रीं द्वादशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि ।