Book Title: Tattvagyan Tarangini Vidhan
Author(s): Rajmal Pavaiya
Publisher: Taradevi Pavaiya Granthmala

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Page 389
________________ ३८० महाजयमाला विपदाओं से धबराकर यह तत्क्षण सत्पथ को तज देता। निज जीवन की रक्षा के हित वर्जित भावों को भज लेता॥ तत्त्व ज्ञान की गंगा पायी नित अवगाहन करने को । हिंसादिक पांचों पापों का मूल सर्वथा हरने को ॥ क्रोधादिक चारों कषाय की खेती अब बह जाएगी । निष्कषाय भावना सदा को ही निज में रह जाएगी | पंच महाव्रत धारूं पाचों समिति गुप्ति त्रय शुद्धि सहित । तेरह विध चारित्र पालकर पाप पुण्य से बनूं रहित ॥ धर्म ध्यान की शुभबेला का मैं समुचित उपयोग करूं । आज्ञा विचय अपाय विचय संस्थान विचय सब ह्रदय धरूं। फिर में शुक्ल ध्यान धारूंगा निर्विकल्प हो जाऊंगा । शुक्ल ध्यान के चारों पाये ध्याकर शिवपद पाऊंगा | इस क्रम से मैं सिद्ध बनूंगा त्रिभुवन शीर्ष मुकुटमणि बन। त्रिलोकाग्र पर सदा रहूंगा बात वलय तनु में ही तन || युगपत लोकालोक लखूगा सकल द्रव्य गुण पर्यायें । एक समय में ही पाऊंगा राग नहीं आने पाए | परम शुद्ध चिद्रूप ध्यान का फल में ही तो पाऊंगा । चारों गतियों के कुचक्रसे बच पंचम गति पाऊंगा | मिथ्या भ्रम रजनी की रेखा सदा सदा दुर्गण धामी । इसका ही विषरस पीपी कर होता हूं कुमार्गगामी ॥ ज्ञानानंद स्वरूप आत्मा ध्रुव त्रैकालिक सिद्ध समंत । वर्तमान में भी यह है भगवान यही अरहंत महंत ॥ तत्त्व ज्ञान की रुचि होते ही ऐसा हो जाता है ज्ञान । फिर धीरे धीरे विकास कर हो जाता है यह. भगवान || पूर्णानंद रूप हो जाएं सभी जीव शिव सुखपाएं । शाश्वत समयसार निज ध्यायें कभी न कोई दुख पाएं | Mernama

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