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३१६ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी पंचदशम अध्याय पूजन
द्रव्ययोग विनाश हित तुम क्षय करो यह भाव योग । आत्मा निर्योग रूपी सर्वथा ही है अयोग ||
महा अर्घ्य
छंद गीत
बड़ी कठिनाई से पायी है ये संयम की शरण । मोक्ष के मार्ग पै रक्खा है मैंने पहिला चरण ॥ शुद्ध समकित की पवन भुझको उड़ा कर लायी । भेद विज्ञान की महिमा महान अब पायी ॥ श्री जिनराज के चरणों की मिली मुझको शरण । मोक्ष के मार्ग पै रक्खा है मैंने पहिला चरण ॥ स्वपर विवेक जगा आत्मा का भान हुआ । हेय ज्ञेयादि उपादेय का भी ज्ञान हुआ | मोह मिथ्यात्व की परिणति का किया मैंने हरण | मोक्ष के मार्ग पै रक्खा है मैंने पहिला चरण ॥ धर्म अरु शुक्ल ध्यान मेरे पास आया है शुद्ध चारित्र यथाख्यात उर समाया है ॥ मुझे करना है अब तो मोक्ष लक्ष्मी का वरण । मोक्ष के मार्ग पै रक्खा है मैंने पहिला चरण ॥ दोहा
महाअर्घ्य अर्पित करूं करूँ कर्म अवसान । एक शुद्ध चिद्रूप पा हो जाऊं भगवान ॥
ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय महाअर्घ्य नि. ।
जयमाला
छंद विजया
तुम अगर नित्य स्वाध्याय करते रहो ।
तो तुम्हें तत्त्व का ज्ञान होगा जरूर ||
सतत ज्ञान अभ्यास में रत रहो ।
तो तुम्हें भेद विज्ञान होगा जरूर ॥