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२६१ __. श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान ज्ञान है तो राग का क्या काम है ।
राग है तो ज्ञान का क्या काम है ॥ परम शुद्ध चिद्रूप ही नित्य ध्याऊ ।
सतत अष्ट कर्मो के अवसान के हित ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि । नहीं ज्ञान चंदन मिला मुझको अब तक |
मैं भव ज्वर से व्याकुल हुआ जा रहा हूं || विभावों के चंदन लगाए हैं इस पर ।
भवोदधि में बहता ही मैं जा रहा हूं || करूं क्या बताओ मुझे प्रभु सुमति दो ।
मैं सन्मार्ग पाऊँ स्वकल्याण के हित ॥ परम शुद्ध चिद्रूप ही नित्य ध्याऊं ।
सतत अष्ट कर्मो के अवसान के हित || ॐ ह्रीं त्रयोदशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय संसारताप विनाशनाय चलनं नि. । .. नहीं ज्ञान अक्षय की पायी स्वमहिमा ।
नहीं आत्मा के किए मैंने दर्शन || जगा ही नही अक्षती भाव मेरा ।
किए हैं सदा मैने कर्मो के बंधन ॥ करूं क्या बताओ मुझे प्रभु सुमति दो ।
मैं सन्मार्ग पाऊँ स्वकल्याण के हित || परम शुद्ध चिद्रूप ही नित्य ध्याऊं ।
सतत अष्ट कर्मो के अवसान के हित ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतं नि. ।