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श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी चतुर्दशम अध्याय पूजन दुखों के बीज हमने बोए हैं सदा से ही । खेत हमने उगाए कष्ट के सदा से ही ॥
पूजन क्रमाकं १५ तत्त्वज्ञान तरंगिणी चतुर्दशम अध्याय पूजन
स्थापना
पीतिका तत्त्व ज्ञान तरंगिणी अध्याय सरल चुतर्दशम । शुद्ध निज चिद्रूप के ही सुस्मरण का करो श्रम || अन्य कार्यों के समय भी करो इसका स्मरण ।
यही करता है सदा को नष्ट जन्म जरा मरण ॥ ॐ ह्रीं चतुर्दशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं चतुर्दशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं । ॐ ह्रीं चतुर्दशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
अष्टक
छंद राधिका मैं ज्ञान भावना जल के कलश सजाऊं । जन्मादि रोग हर निज के वाद्य बजाऊं । .
चिद्रूप शुद्ध की महिमा उर में जागे ।
- मिथ्यात्व मोह की परिणति तत्क्षण भागे || ॐ ह्रीं चतुर्दशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि. ।