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२४५ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान जो समकित पा लेता उसका सिद्धस्वपद निश्चित होता। जो न इसे पा सकता है वह चारों गतियों में रोता | , तत्त्वज्ञान तरंग की पायी हिलोर ।
नाच उट्ठा आज मेरा ह्रदय भोर || मोह भ्रम तम को मिटाऊंगा अभी ।
ज्ञान केवल किरण पाऊंगा अभी ॥ ॐ ह्रीं द्वादशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोहन्धकार विनाशनाय दीपं नि. । तत्त्वज्ञान तरंग की पायी हिलोर ।
नाच उट्टा आज मेरा ह्रदय भोर || धूप निज से अष्टकर्म जलाऊंगा ।
पद महान प्रकाशमय निज पाऊंगा ॥ ॐ ह्रीं द्वादशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अषष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि. । तत्त्वज्ञान तरंग की पायी हिलोर ।
नाच उट्ठा आज मेरा ह्रदय भोर || मोक्ष फल ही प्राप्त करना है मुझे ।
. स्वयं ही तो आप्त बनना है मुझे ॥ ॐ ह्रीं द्वादशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोक्षफल प्राप्ताय फलं नि. । तत्त्वज्ञान तरंग की पायी हिलोर ।
- नाच उट्ठा आज मेरा ह्रदय भोर || पद अनर्घ्य अपूर्व निश्चित पाऊंगा ।
लौटकर भव मध्य अब ना आऊंगा ॥ ॐ ह्रीं द्वादशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्य नि. ।