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श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान
संसार विजेता बनने का शुद्धात्म तत्व ही है साधन । रत्नत्रय भक्ति ह्रदय में हो अंतर में हो चौ आराधन ॥
शुद्ध चिद्रूप प्राप्ति के हैं जो भी अभिलाषी । चाहिए अपने चतुष्टय के बनें वे वासी ॥ उन्हें चिद्रूप शुद्धि प्राप्ति होगी निश्चय से ।
सुख की अनुभूति होगी उन्हें निज के आश्रय से ॥६॥ ॐ ह्रीं चतुर्थ अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।
(७)
न द्रव्येण न कालेन न क्षेत्रेण प्रयोजनम् ।
केनचिचन्नैव भावेन लब्धे शुद्धचिदात्मके ||७||
अर्थ- परन्तु जिस समय शुद्ध चिद्रूप की प्राप्ति हो जाय, उस समय द्रव्य क्षेत्र काल भाव के आश्रय करने की कोई आवश्यकता नहीं ।
७. ॐ ह्रीं शुभाशुभद्रव्यक्षेत्रादिविकल्परहितचिद्रूपाय नमः ।
ज्ञानमंदिरस्वरूपोऽहम् ।
शुद्ध चिद्रूप की जब प्राप्ति तुम्हें हो जाए 1 फिर चतुष्टय से नहीं काम उसे क्यों लाए ॥ शुद्ध चिद्रूप ही तो सौख्य का प्रदाता है । यही आनंद कंद गीत शुद्ध गाता है ॥७॥
ॐ ह्रीं चतुर्थ अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।
(८)
परमात्मा परंब्रह्म चिदात्मा सर्वदृक् शिवः । नामनीमान्यहो शुद्धचिद्रूपस्यैव केवलम् ॥८॥
अर्थ- परमात्मा परंब्रह्म चिदात्मा सर्वदृष्टा और शिव ये समस्त नाम उसी शुद्ध चिद्रूप के हैं ।
८. ॐ ह्रीं परमब्रह्मस्वरूपाय नमः ।
शिवसौख्यस्वरूपोऽहम् |