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२२६ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी एकादशम अध्याय पूजन
अविकल्पी स्वरूप आत्मा नहीं विकल्पों का है काम । सब संकल्प विकल्पों विरहित है इस चेतन का ध्रुवधाम ॥
ॐ ह्रीं एकादशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोक्षफल प्राप्ताय फलं नि. ।
नहीं अर्घ्य लाया मैं निज ज्ञान वाले ।
तो निजं ध्यान कैसे मैं करता बताओ || स्वपद कैसे पाता विभावों के आगे ।
स्वभावों का अब मार्ग हे प्रभु दिखाओ || मिला शुद्ध चिद्रूप का भव्य वैभव ।
तो फिर बोलो दुनिया में कैसे रहूँगा || निजानंद घन मैंने पाया है स्वामी ।
तो फिर बोलो भव धार कैसे बहूँगा ||
ॐ ह्रीं एकादशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्य नि. ।
अर्ध्यावलि
एकादशम अधिकार
(१)
शांता: पांडित्ययुक्ता यमनियमबलत्यागरैवृत्तवन्तः,
सद्गीशीला स्तपोर्चानुतिनतिकरणा मौनिनः संत्यसंख्याः । श्रोतारश्च कृतज्ञा व्यसनखजयिनोऽत्रोपसर्गेऽपिधीराः : ।
निःसंगाः शिल्पिनः कश्चन भुवि विरलः शुद्धचिद्रूपरक्तः ||१|| अर्थ- यद्यपि संसार में शांतचित्त, विद्वान, यमवान, नियमवान, बलवान, धनवान, चारित्रवान, गोदान, तप, पूजा, स्तुति और नमस्कार करने वाले मौनी श्रोता, कृतज्ञ व्यसन और इंद्रियों के जीतनेवाले उपसर्गो के सहने में धीरवीर परिग्रहों से रहित और नाना प्रकार की कलाओं के जानकार असंख्य मनुष्य हैं। तथापि शुद्धचिद्रूप के स्वरूप अनुरक्त कोई एक विरला ही है ।