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परीषद
सत्य से चिट्टमाणस्स उवसग्गामधारण ।
संकाभीओ न गच्छेज्जा उद्वित्ता अन्नमासणं ॥ २१ ॥
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११ शय्या
उच्चावयाहिं से जाहिं तवस्ती भिक्खु थामवं । नाइवेलं विम्मेज्जा पावदिट्ठी हिम्मई ॥ २२ ॥ परिक्कुवरस्यं लद्धं कल्लाणमदु वा पावयं । किमेराई करिस्तइ एवं तत्थ ऽ हियासए | २३ १२ आक्रोश
अक्को सेज्जा परे भिक्खु न तेसिं पडिसंजले । सरिसो होइ बालाणं तम्हा भिक्खू न संजले ॥ २४ ॥ सोच्चाणं फरसा मासा दारुणा गामकंटगा । तुसिणीओ उबेहेज्जा न ताओ मणसीकरे || २५ ॥ १३ वध
हओ न संजले भिक्खू मणं पिन पओसए । तितिक्खं परमं नच्चा भिक्खू धम्मं समायरे ॥ २६ ॥ समणं संजयं दन्तं हणेज्जा कोइ कत्थई ।
नव्य जीवस्स नासु त्ति एवं पेहेज्ज संजए ॥ २७॥
१४ याचना
दुक्करं खलु भो निच्चं अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइयं होइ नत्थि किंचि अजाइयं ॥ २८ ॥ गोयरग्ग- पविट्ठस्स पाणी नो सुप्पसारए ।
सेओ अगारवा त्ति इइ भिक्खू न चिन्तए || २९ ॥
१५ अलाभ
परेसु घासमेसेज्जा भोयणे परिणिट्टिए ।
लद्धे पिंडे अलद्धे वा नाणुतप्पेज्ज पंडिए ॥ ३० ॥ अज्जेवाहं न लब्भामि अवि लाभो सुवे सिया ।
जो एवं पडिसंचिक्खे अलाभो तं न तज्जए ॥ ३१ ॥
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