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गृहस्थ-धर्म ( २ )
जिन्होंने भव्य जनों को सागार और अनगार धर्मका उपदेश दिया है उन जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार करके हम श्रावक धर्मका प्ररूपण करते हैं ॥ १ ॥
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दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषोधोपवास, सचित-त्याग, रात्रि भोजन त्याग, ब्रह्मचर्य, आरम्भस्याग, परिग्रह- त्याग, अनुमति-त्याग और उद्दिष्ट आहार त्याग, ये देशविरत श्रावककी ग्यारह प्रतिमाएँ अर्थात् दर्जे हैं। जिसको सम्यक्त्व नहीं है उसके ये ग्यारह प्रतिमा नहीं होतीं । इस कारण मैं सम्यक्त्वका वर्णन करता हूँ, तुम सुनो || २ -- ३ ||
आप्त, आगम और तत्त्वों में शंका आदिक दोष रहित निर्मल श्रद्धान होनेको सम्यक्त्व जानना चाहिये ||४||
निःशङ्का, निष्कांक्षा, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपगूहन, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना, ये सम्यक्त्वके आठ अंग हैं ||५||
संवेग, निवेग, निंदा, गर्दा, उपशम, भक्ति, वात्सल्य और अनुकंपा, ये सम्यक्त्वके आठ गुण होते हैं ॥ ६ ॥
पदार्थों में श्रद्धान रखनेवाला जो कोई उपर्युक्त आठ गुणोंसे संयुक्त और चित्त होकर सम्यक्त्वको अंगीकार करता है वह सम्यकदृष्टि होता है ।। ७ ।। १. दर्शन
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पांच उदंबरों और सात व्यसनों का जो कोई सम्यकदृष्टि त्याग करता है उसको दर्शन श्रावक कहते हैं । अर्थात् वह पहली प्रतिमाका धारी होता है ||८ ॥ गूलर, वड़, पीपल, पिलखन, और अंजीर, ये पांच फल तथा संघाणा, ( आचार ) और वृक्षों के फूल, इन सबमें सजीवोंकी निरंतर उत्पत्ति होती है ।
इसलिये ये सब त्यागने योग्य हैं ।। ९ ।।
जुआ, शराब, मांस, वेश्या, शिकार, चोरी और परस्त्री,
कुव्यसन दुर्गतिमें लेजानेवाले पाप हैं ।। १० ।।
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ये सात
२. व्रत
पांच अणुव्रत, तीन गुणत्रत, चार शिक्षाव्रतोंको जो कोई पालता है वह दूसरी प्रतिमाका धारी है ॥ ११ ॥