Book Title: Tattva Samucchaya
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 167
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ उदुम्बर - उदुम्बर फल विशेष ३-९ उदिष्ट त्याग ( उद्दिह) - ग्यारहवीं प्रतिमा ३--२, ३५ उद्योत ( उज्जोद ) - पुद्गल-पर्याय ९-११ उपगूहन ( उवगूण ) - सम्यकत्व का पांचवां अंग ३ .-५ उपचरित ( उवयरिय ) - नयभेद, तीन प्रकार का १५-९ उपदेश ( उवदेस ) - संज्ञी जीव द्वारा ग्रहणीय १२-६२ उपनय ( उवणय ) - तीन प्रकार का १५-६ उपभोग अं० ( उवभोग ) अन्तराय कर्म का भेद १० - १५ उपभोगपरिभोगपरिमाण - दूसरा गुणत्रत २-२३ उपभोगपरिभोगातिरेक ( उवभोगपरिभोगाइरेय ) - अनर्थदग डब त का अतिचार २-२९ उपमा ( उवमा) - सत्य वचन योग का एक भेद उपयोग ( उवयोग) - दो प्रकार : दर्शन ९-२; ज्ञान ९-४ उपशम ( उवसम) - सम्यक्त्व का पांचवां गुण ३-६, ७- २८ - कर्मों की अवस्था विशेष ११-११ उपशम सम्यक्त्व ( उसम-सम्मत्त) १२-५७ उपशांत-मोह ( उंवसंतमोह ) - ग्यारहवां गुणस्थान ११-२४ उपशामक ( उवसामग) - १० चे गुणस्थानवी जीव ११-२३ उपाध्याय ( उवज्झाय) मं० १ उष्णपरीषह - ८-८, ९ ऊर्वदिशा प्रमाणातिक्रम ( उड्ढदिसापमाणाइक्कम) - दिग्त्रत का अतिचार २-२२ क ऊर्चलोक ( उवरिमलोय ) - खड़े किये हुए मुरज के आकार का १-६ - ऊचाई एक लाख योजन कम सात रान १-७ ऋजुसूत्र नय (रिदुसुत्त) - दो प्रकार का १५-३२ ऋषभ ( उसह ) - पहले तीर्थकर १-४७ सिद्ध हुए तृतीय काल अर्थात् सुषमा दुपमा के ३ वर्ष ८ मास १ पक्ष शेष रहने पर १-६३ For Private And Personal Use Only

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