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शिक्षाव्रत (सिक्खावय)- चार प्रकार के २-३
-दूसरी प्रतिमा का अंग ३-११ शिखरी (सिहरि) - हैरण्यवत और ऐरावत क्षेत्रों के बीच का कुलाचल १-३२ शीत (सीय) - परीषह ८-६, ७ शीतल ( सीयल) - १० वें तीर्थकर, १-४७ शीलैशी ( सीलेसि ) - शीलों का ईशत्व ११-२८ शुक्र ( सुक्क)- ९ वां स्वर्ग १-२१
-लेश्या १२..५२ शुक्ल - ध्यान चार प्रकार का १३-२१ शुद्ध नय ( सुद्धणय ) - ९-६, ९-८ शुद्ध भाव ( सुद्ध-) - ९-८ शुद्ध संग्रह नय ( सुद्ध संगह ) - संग्रह नय का भेद १५-३० शुद्धार्थ भेदक नय ( सुद्ध) - व्यवहार नय का भेद १५-३१ शुभ नाम ( सुभ.)- नाम कर्म का भेद १०-१३ शुभ भाव (सुभ. )- ९-३१ शंगवेर (सिंगवेर ) - सचित्त, मुनि के लिए वर्ण्य ४-७ शौच ( सउच्च ) - धर्माग ६-१ शौचोपधि ( सौचुवहि ) - कमण्डलादि मुनि द्वारा ग्राह्य ५-१४ श्रद्धान ( सद्दहण )- आप्त, आगम और तत्त्वों का ३-४ श्रमण (समण) - जैन साधु २-३१ श्रवण ( सवण) - नक्षत्र १-१८ श्रावक ( सावओ) - जैन गृहस्थ, उत्कृष्ट, दो प्रकार ३-३५ श्रावक धर्म ( सावग धम्म) - बारह प्रकार का २-१; ३-१ श्रुत आवरण ( सुय )- ज्ञानावरण कर्म का एक भेद १०-४ . श्रुत-अज्ञान - ज्ञान भेद ९-५ श्रुत ज्ञान ( सुद.)- ज्ञान भेद ९-५; १२-३२ श्रेयांस ( सेयंस ) - ११ वें तीर्थकर १-४८ श्रोत्र निरोध ( सोद-)- ५-१८
संकल्प (संकप्प) - हिंसा का एक प्रकार, जानबूझकर हिंसा करना २-५ सगर (सगर) - दूसरे चक्रवर्ती १-५०
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