Book Title: Tattva Samucchaya
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 208
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और पर्यायाथिक इन दो नयों को मौलिक बतलाकर उनके तथा नैगमादि नौ नयों के भेद प्रभेद उदाहरणों सहित संक्षेप में समझाये हैं। कर्ता का परिचय पूर्व पाठ के टिप्पण में दिया जा चुका है । निक्षेप यह प्रकरण भी देवसेन कृत नयचक्र से लिया गया है जिसके लिये देखिये पाठ १४ का टिप्पण । तत्त्व-समुच्चय का परिशिष्ट [संकलन से सम्बध्द गाथाएं] कुछ गाथाएँ संकलन में छूट गई हैं। वे प्रकरणोपयोगी होने के कारण यहाँ दी जाती हैं। पृष्ठ १३ : २-२२ के पश्चात् निम्न गाथा पढ़िये जिसमें दिग्नत के अचार बतलाये गये हैं उड्ढमहे तिरियं पि य न पमाणाइक्कम सया कुज्जा । तह चेव खित्तवुड्ढी कहिं वि सइअंतरद्धं च ॥ २२ क ॥२८॥ - इसका अर्थ (पृष्ठ ७६ ) अनुवाद में देखिये । २-३० के पश्चात् निम्न गाथाएं पढिये जिनमें सामायिक के समय ध्यान देने योग्य विषय तथा सामायिक के पांच अतीचार वर्णित हैं - सिक्खा दुविहा गाहा उववाय-हिइ-गई कसाया य बंधंता वेयंता पडिवज्जाइक्कमे पंच ।। ३० क || २९५ ।। मण-वयण-कायदुप्पणिहाणं सामाइयम्मि वजिजा । सइ-अकरणयं अणुवष्टियस्स तह करणय चेव ॥३० ख ॥ ३१२ ॥ ___ सामायिक के समय निम्न विषयों में से किसी एक पर ध्यान देना योग्य है- दो प्रकार की शिक्षा अर्थात् हेय-उपादेय का विचार, किसी गाथा का अर्थ, जीवों की उत्पत्ति, स्थिति व गति का विचार, कषायों का स्वरूप, कौन जीव कौन से कर्म बांधते हैं, व कौन से कर्मों का फल अनुभव करते हैं, तथा स्वयं For Private And Personal Use Only

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