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सामायिक के पांच अतीचारों का स्वरूप ||३० क || सामायिक में पांच अतीचार वर्जनीय हैं: - मन, वचन व काय की अनिष्ट बातों में गति; स्मृति न रखना अर्थात् चित्त की अनेकाग्रता और अनवस्था या अनादर भाव ॥ ३० ख ॥
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२- ३३ के पश्चात् देशावकासिक व्रत के अतीचार बतलाने वाली निम्न गाथा पढ़िये
वजिजा आणयणप्पओगपेसप्पओगयं चैव ।
सद्दारुववायं तह बहिया पुग्गलक्खेवं || ३० क ॥ ३२०
मर्यादा के बाहर प्रदेश से कोई वस्तु दूसरों से मंगा लेना, किसी को वहां भेजना, वहां के लिये आवाज लगाना, अपने को दिखा कर इशारे से काम करा लेना व पत्थर मिट्टी आदि फेंककर वहां के लोगों का ध्यान अपनी आवश्यकता की ओर आकर्षित करना, ये देशावकासिक व्रती के लिये वर्जनीय हैं । २- ३८ के पश्चात् निम्न गाथा पढ़िये जिसमें अतिथि संविभाग व्रत के अतीचार बतलाये हैं
सच्चित्तनिक्खिवणयं वज्जे सच्चित्तपिहणयं चेव । कालाइक्कमदाणं परववएसं च मच्छरियं ॥ ३८ क ॥ ३२७
अतिथि के आहार योग्य वस्तु को सचित्त वस्तु से मिलाकर, या सचित्त से ढककर उसे आहार के अयोग्य बना देना, या आहार का समय टाल कर आहार दान देने का ढोंग करना, हिसी दूसरे की यह वस्तु है या दूसरे के कारण यह अकल्प्य हुआ ऐसा बहाना बनाना तथा मात्सर्य भाव रखना, ये अतिथि-संविभाग व्रत के पांच अतीचार वर्जनीय हैं ।
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