Book Title: Tattva Samucchaya
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 195
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar १७४ सुभौम ( सुभोम ) -- ८ वें चक्रवर्ती १--५० सुमति (सुमइ ) .. ५ वें तीर्थकर १-४७ सुव्रत ( सुव्वय ) -- २० वें तीर्थंकर १--४८ सुषमा (सुसम) -- अवसर्पिणी काल का २ रा भाग जिसका समय तीन कोडा. कोड़ी सागरोपम है १-३९ सुषमा दुषमा ( सुसम दुस्सम ) -- अवसर्पिणी काल का ३ रा भाग जिसमें स्त्री पुरुष देवी-देव सदृश होते हैं १-३९ सुषमा सुषमा ( सुसुम सुसुम ) -- अवसर्पिणी काल का प्रथम भाग जिसमें पर-स्त्री ___गमन व चोरी नहीं होती १-३९ सूक्ष्म ( सुहुमो ) -- पुद्गल-पर्याय ९--११ सूक्ष्म ऋजुसूत्र ( रिउसुत्तो सुहुम ) -- ऋजुपूत्र नय का भेद १५--३२ सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति ( सुहुम किरिय ) - ध्यानविशेष १३-०३० सूक्ष्म-साम्पराय ( सुहुम संपराय ) -- दसवां गुणस्थान ११.-२२,२३ सैंधव ( सिंधव ) .. मुनि के लिये वर्ण्य ४--८ सौधर्म ( सोहम्म ) -- पहला स्वर्ग १..२०,२१ सौवर्चल नमक (सोवच्चल) - मुनि के लिये वयं ४-८ हर - रुद्र ७-९ हरि - जम्बूद्वीप का तीसरा क्षेत्र १-३१ हरि - नारायण ७-९ हरिषेण - १० वें चक्रवर्ती १-५० हस्त (हत्थ) - नक्षत्र १-१६ हास्य (हास) - भाषा भेद ५-१२ हिमवान् (हिमवंत) – भरत क्षेत्र के उत्तर का कुलाचल १-३२ हिरण्य (हिरण ) - अपरिग्रहाणुव्रत का अतिचार २-२० हिंसाप्रदान (हिंसप्पयाण) - अनर्थदण्ड का भेद २-२७ हैमवत ( हेमवद) - जंबूद्वीप का दूसरा क्षेत्र १-३१ हैरण्यवत (हेरण्यवद) - जंबूद्वीप का छठा क्षेत्र १-३१ For Private And Personal Use Only

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