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के मंत्री तथा श्रवणबेलगोला में बाहुबलि की विशाल मूर्ति के प्रतिष्ठापक चामुण्डराय के गुरु थे। मारसिंह द्वि. की मृत्यु शिलालेखों के प्रमाण से सन् ९७५ में हुई थी । चामुण्डरायकृत पुराण में उसके पूर्ण होने का समय शक ९०० ईस्वी ९७५ अंकित है । अत: यही काल प्रायः नेमिचन्द्राचार्य का समझना चाहिये ।
द्रव्य-संग्रह में कुल ५८ गाथाएं हैं जिनमें जैन तत्त्वज्ञान का बड़ी सुन्दरता से निरूपण किया गया है।
कर्म प्रकृति यह उत्तराध्ययन सूत्र का ३३ वां अध्ययन है। ग्रंथ की जानकारी के लिये ऊपर पाठ ८ का टिप्पण देखिये ।
गुणस्थान यह प्रकरण गोम्मटसार जीवकाण्ड में से संकलित किया गया है | ऊपर पाठ ९ के टिप्पण में द्रव्यसंग्रह के कर्ता नेमिचन्द्राचार्य का परिचय व कालनिर्णय दिया जा चुका है। वे ही आचार्य गोम्मटसार के भी कर्ता हैं । गोम्मट का अर्थ होता है सुन्दर । संभवतः उनके रूप-सौंदर्य के कारण चामुण्डराय को गोम्मटराय भी कहते थे और उन्हीं के द्वारा प्रतिष्ठित किये जाने के कारण श्रवणबेलगोला में बाहुबली की मूर्ति भी गोम्मटेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुई । नेमिचन्द्राचार्य ने षटखंडागम व उसकी धवला टीका का सार ग्रहण करके गोम्मटराय की प्रेरणा से गोम्मटसार ग्रंथ की रचना की । इसके अन्तमें उन्होंने कहा है :
गोम्मटसंगहत्तं गोम्मटसिहरुवरि गोम्मटजिणो य ।
गोम्मटराय-विणिम्मियदक्खिणकुक्कुडजिणो जयउ ॥ कर्मका. ९६८
गोम्मटसार दो भागों में विभक्त है-एक जीवकाण्ड जिसमें ७३३ गाथाओं द्वारा चौदहों गुणस्थानों और चौदहाँ मार्गणास्थानों का अति सुव्यवस्थित वर्णन किया गया है। दूसरा विभाग कर्मकाण्ड है जिसमें ९७२ गाथाओं द्वारा कर्म सिद्धान्त का अति सूक्ष्म, गहन और विशद वर्णन किया गया है ।
___ गोम्मटसार जीव-काण्ड (हिन्दी अनुवाद सहित) रायचंद्र जैन शास्त्रमाला बम्बई १९२७; अंग्रेजी अनुवाद सहित Sacred Books of the Jainas Series, Lacknow.
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