Book Title: Tattva Samucchaya
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 192
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७१ सम्मति (सम्मदि) - सत्य का भेद १२-१५ सम्यक चारित्र (चरण) - मोक्ष कारण ९-३२ सम्यक्त्व (सम्मत्त) - ग्यारह प्रतिमाओं का मूल ३-३,४७-२९ - दर्शन मोहनीय का भेद १०--९ -- बारवीं मार्गणा १२--५४ सम्यगज्ञान (- गाण) - मोक्षकारण ९-३२ सम्यग्दर्शन - मोक्षकारण ९-३२ सम्यग्दृष्टि (सम्मादिहि)- ३-.७१२-१२,१३ सम्यमिथ्यात्व (सम्मामिच्छत्त) - दर्शन मोहनीय का भेद १०-१ - सम्यक्त्व का भेद १२-५९ संयम (संजम)- ४-१;६-१,११-९ - आठवी मार्गणा १२-३६ संयमोपधि (संजभुवहि) - पिछी आदि मुनि द्वारा ग्राह्य ५ - १४ संयुक्ताधि करण ( संजुयाहिगरण) - अनर्थदण्ड व्रत का अतिचार २-२९ सयोग केवली ( सजोग केवलि) - तेरहवां गुणस्थान, ११-२६,२७ सर्पविष न्याय ( सप्यविसणाय) २-२३ सर्वघाति (सव्व घादि) - फल की अपेक्षा कर्म भेद ११-७ सर्वज्ञ (सव्वण्ह) - १-३,७-४४ सल्लेखना ( सल्लेखण ) - चौथा शिक्षावत, प्रतप्रतिमा का अंग ३-१९ संवर ( संवर ) - भावना ७- २,२९ संवाहन ( संवाहण) - मुनि के लिये वर्ण्य ४-३ संवेग ( संवेअ)- सम्यक्त्व का पहला गुण ३-६ संशय ( संसय)- ज्ञान-दोष ९-३५ संशयवचनी ( संसयवयणी) - असत्य मृषा भाषा का भेद १२-१८ संसार ( संसार ) - भावना ७-२,१२ संस्थान ( संठान )- पुद्गलपर्याय ९-११।। संस्थानविचय ( संठानविचय)- धर्म ध्यान का भेद १३-१९ सहसाभ्याख्यान ( --अभक्खाण )- सत्याणुवत का अतिचार २--१३ सहस्रार ( सहस्सार ) - आठवां स्वर्ग १-२० - बारहवां स्वर्ग १-२२ साकारस्थापना ( सायारठवणा ) - १६-५ For Private And Personal Use Only

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