Book Title: Tattva Samucchaya
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 188
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - १६७ वासुपूज्य (वासुपूज्जे) १२ वें तीर्थंकर १-४८ - कुमार काल में महाव्रत ग्रहण १-६० विकथा ( विकहा ) - भाषा-भेद, मुनि को वर्ज्य ५-१२ चार प्रकार, प्रमाद भेद ११-१६ विग्रहगति ( विगहगदि ) - जन्मान्तर ग्रहण के लिये जीव का गमन १२-६.५ विजय (विजय) प्रथम बलदेव १-५२ www.kobatirth.org B - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वंश राज्यकाल १५५ वर्ष १-७२ विजयन्त ( विजयंत ) - एक अनुत्तर विमान १-२५ विजयार्ध (विजयद्ध ) भरत क्षेत्र के मध्य में पर्वत १-३३ ( वेयड्ढणग ) - गंगा व सिंधु नदियों द्वारा इस पर्वत ने भरत क्षेत्र के ६ खंड किये हैं १-३६ विदेह - जम्बूद्वीप का चौथा क्षेत्र १ - ३१ विनय ( विणय ) - मिथ्यात्व का भेद ११-४ विपरीत ( विवरीय ) - मिध्यात्व का भेद ११-४ विपाकविचय ( विवाग-विचय) - धर्मध्यान का भेद १३-१८ विभाव अनित्य ( - अणिच्च ) - पर्यायार्थिक नय का भेद १५-२६ विभ्रम (विब्भम) - ज्ञानदोष ९-३५ विमल ( विमल ) - १३ वें तीर्थकर १-४८ विमलवाहन ७ वें कुलकर व मनु पृ. ७ टि. विमोह - ज्ञानदोष ९-३५ विरुद्धराज्य ( विरुद्धरजं ) - अचौर्याणुव्रत का अतिचार २-१५ विरेचन (विरेयण ) - मुनि के लिये वर्ज्य ४-९ विशाखा ( विसाहा ) - नक्षत्र १-१७ विष्णु ( विण्हू ) - नारायण, ९ शलाका पुरुष १-५३ वीर - महावीर, कुमार काल में महाव्रत लिये १-६० वीर्य अन्तराय ( वीरिय, ) अन्तराय कर्म का मेद १०-१५ 1 वेद - पांचवीं मार्गणा १२-२ वेदक (वेदग ) - सम्यक्त्व का भेद, क्षयोपशमिक ११ - १०;१२-५६ वेदनीय (वेषणीय ) - कर्म दो प्रकार का १०- ७ वेश्या (वेसा) - चौथा व्यसन ३-१० For Private And Personal Use Only

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