Book Title: Tattva Samucchaya
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

View full book text
Previous | Next

Page 187
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोक (लोय) - ७-२ लोकाकाश (लोयायास) - आकाश का वह भाग जिसमें जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म व काल द्रव्य भी पाए जाते हैं. १-२,४; ९-१४ लोकान्त घनोदधि (लोयन्त घणोवहि) - लोकाकाश के अन्त भाग में स्थित वायुमंडल १-१४ लोकोत्तम (लोगुत्तम) - म० ४ लोभ (लोह) - चार प्रकार का १२-२६ लौंच (लोच) - छुरा कैंची विना केशों का अपने हाथ से उत्पाटन ३-३८ - मुनि का एक मूलगुण ५-२९ वचन (वयण) -योगविशेष ३-२७ वचनयोग (वचजोग)-चार प्रकार का, सत्य, असत्य, उभय,अनुभय १२-१३,१९ वध (वह)- दो प्रकार का, संकल्पी और आरंभी २-५ - अहिंसाणुत्रत का आतचार, मारपीट करना, २-९ - परीषह ८-२६,२७ वनस्पति (वणप्फदी) - एकेन्द्रिय जीवभेद १-९ वन्दना (वंदणा)- तीसरा आवश्यक ५-२५ वमन (वमण)- मुनि के लिये वर्ण्य ४-९ वर्ण (वण्ण) - पुद्गल का गुण, पांच प्रकार का ९-७ वर्तमाननय ( वट्टमाणणय) - नैगम नय का भेद १५-२८ वर्धमान (वड्ढमाण) - २४ वें तीर्थंकर, महावीर १-४८ - तीर्थकर पार्श्व के जन्म से २०८ वर्ष पश्चात् जन्म हुआ, १-५८ - चतुर्थकाल में दुषमा-सुषमा के ३ वर्ष ८ मास १ पक्ष शेष रहने पर सिद्ध हुए १-६३ वंशा (वंसा)- २ री पृथ्वी का गोत्र नाम १-९ वसुमित्र - राज्यकाल आग्निमित्र सहित ६० वर्ष १-७३ वस्कधर (वस्थेक्कधर) - उत्कृष्ट श्रावक का प्रथम भेद ३-३५ वात्सल्य (वच्छल्ल) - सम्यक्त्व का सातवाँ अंग ३-५ वायु (वाऊ) - एकैद्रिय जीव-भेद ९-९ वालुप्रभा (वालुपहा) - तीसरा नरक १-८ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210