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कलिक (काकी ) - इन्द्रसुत, नाग चतुर्मुख, आय १०० वर्ष, राणकाल ४ २ वर्ष
___ - जनपद से शुल्क याचना व श्रमणों से अग्रपिण्ड की याचना : ७६ कल्प ( काप) - स्वर्ग १-१९, २२ कल्पातीत (कपातीद) - स्वर्गों के ऊपर के देवलोक जिन में इन्द्रादिक भेद
नहीं हैं१-१९ काय (कसाय) - चार प्रकार, प्रमाद-भेद ११-१६ कषाय मार्गणा ( कसाय-) - छठी मार्गणा १२ --२२ कषाय मोहनीय (कसाय मोह ) - १६ प्रकार का १० ... ११ कापिष्ट ( कापिट्ठ) - आठवां स्वर्ग १-२१ कापोत (काऊ) १२-४८ कामतीब्रामिलाष (कामतिव्वाभिलाम) - ब्रह्मचर्याणुव्रत का अतिचार २ -१७ काय ( काय) - त्रियोग में से एक ३-२७ काय ( काअ) - प्रदेशसंचयरूप द्रव्य ९-१९; - तीसरी मार्गणा १२ . ६, कायोत्सर्ग ( काउस्सग्ग) - सामायिक के योग्य कार--स्थिति ३--२१
- छठा आवश्यक ५-२८ कारित ( कारिय) - किया-विशेष ३-२७ कार्माण (कम्मइय) - काय का भेद १२-२० काल ( कालो) - द्रव्य, अजीव-भेद ९-१०, १६, १७ . कालाणु-९-१७ काला नमक ( कालालोण) - मुनि के लिये वयं ४-८, काश्यप ( कासव ) - गौतम गणधर का गोत्र नाम ८-१ किमिच्छक (किमिच्छय ) - मुनि के लिये वर्ण्य अन्न ४-३ कुण्डल नगर - २४ वें तीर्थंकर वर्धमान का जन्मस्थान १-५७ कुंथु ( कुंय ) - सतरहवें तीर्थकर १-४८;- छठे चक्रवर्ती १-५० कुम्य (कुवियग) - अपरिग्रहाणुव्रत का अतिचार २-२० कुलकर या कुलधर - कुलों के निर्माण में कुशल प्रतिश्रुत आदि १८ मनु
कुलशैल (क्कुलसेल ) - कुलाचल, जनपदों का विभाग करनेवाले पर्वत ? -३०
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